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प्रहार कर बैठते है। राज्य व विग्विजय के लिए इस अमर्यादित कार्य को देखकर बाहुबली को निर्वेद हो जाता है और रास के वीर रस प्रधान सारे आलंबन गत में बदल जाते है। इस एकदम हुए परिवर्तन को विदवान कवि ने बड़े संभार से गोगा । जिसमें कहीं भी रस दोष नहीं होपाता। उदाहरण दृष्टव्य है:
पिए थिए र पम संसार, पिक धिराभिम राम रिदिन
पबह ए जीव संहार की धड़ कुण विरोधे बतिर अपनी पराग्य, जीव हानि मादि बातों ने भाई का अपने ही सहोदर पर धर्म शुद्ध के स्थान पर चक्र का प्रहार एक दम अधर्म युदध था। इसी अभयादित कृत्य ने ही बाहुबली के प्रदय में शम की अष्टि कर दी। वे दीवा से लेते है। भरतेश्वर की माले मासुओं से भर जाती है और वह उनके कदमों पर लेट जाता है।
सिरि बरि पलोच करेउ कासणि सी बाहुबले
असूइ मावि परेर स पनमर पर पहो।' उक्त उद्धरणों की भाषा बरत, पादवकी सरस व गेयता प्रधान है। अब मोर और माधुर्य का समन्वय हो जाता है। अपज की टकार वमित्व प्रधानता में बस्तु थिति को और भी परस बना दिया है।
भरोबर बाकी राजमार मोबना बनी।
बोनस परी मावीम रावी माय मम समीर रख प्रधान अध काम वा मागाव यादी. यामप्रसार
गाय का
बोबा दरनुप्रास तो रासीका पिrm। इसके अतिरिक्त इष्टान्त, उदाहरण, बलि, त्यति मादीवानाका गए कर कविका
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नीमा
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