________________
२४८ के बाद पत्ता रखा जाना था। कहीं कहीं प्राम' नाम भी मिलता है। हिन्दी जैन साहित्य के परवर्ती मन्य रामों में भी ये नाम विभिन्न प्रकार से मिलते है। उदाहरणार्थ कच्छली रास में वस्तु या वस्त ५ स्वामी चरित में कड़वक एवं ठवणी (स्थापनी) समराराम में मास' व्या पेधड़ रास में लड़ा नाम 'दिए गए है। इसके अतिरिक्त सगों के नाम काडव पर्व भी मिलते है।
मरतेश्वर बाहुबली रास पी इसी तरह वस्तु ठवणी,वाणि भावि में विभक्त होता चलता है। यइयपि कथा में कहीं भी कविकृत सर्म,यदि या समाप्ति नहीं है परन्तु फिर भी क्या का विभाजन परत की विडिवजय (२) परत व बाहुबली का युद्ध (1) बाहुबली का दीक्षा ग्रहण, आदि इन तीन भागों में सरलता से किया जा सकता है।
प्रस्तुत रास के कारती श्री इलिमन मे राम का प्रारम्भ मंगलाचरण से ही क्यिा । कवि ने रिम जिमेश्वर के घरों में प्रणाक करके सरस्वती का मन स्मरण करके, गुरु पद वंदना के पश्चात ही काव्य प्रारम्भ किया है।
रिसह जिसर पय पणमेवी सरसति सामिनि मन समरेवी
नमावि निवर गुरु परम
नाटकीय काप: राक्ष में कई यो कवि की माटीय बाद योगना पर होती है।
.. देवि वि रामान बपिका पाना १- प्राबीम पूर्वर काबनि लि विव.. 1- स्वामी बतिया.. . ! मरामानि किन विबा विद्या सिकर्जर काब्ब मैचय.YO1101
शाची पूर्वराषियों-हादेवाईया प्राकका००परिशिष्ट पाग १४॥ सीरामवासिमानाबालगन्दा अयोध्याकाडमदर डलंकाकाहादि। विवापाराशनिर्वअवध वर्षमादिमामा
टेश्वर बाबही रामतीमांधी .७.२०आदि।