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________________ भी निर्वेदात है। जैन रचनाकारों ने विरोधी रसो का समन्वय बड़े कौशल से किया है।यहा तक कि यह बहुत ही आश्चर्य जनक तथ्य है कि रास या फागु जैसी श्रृंगार प्रधान रचनामी निर्वेदात है। प्रस्तत रासमें रचना- स्थान कवि ने कहीं नहीं दिया है पर भाका के अनुसार एतदर्थ गुजरात या राजस्थान के किसी भी स्थान की कल्पना की जा सकती -कश भागरास की कथा वस्तु संशिप में निम्नलिखित है:.M जंबूद्वीप के अयोध्यानगर में रिषभ जिनेश्वर के सुबंदा और मुमंगला/स दो पुत्र क्रमशः बाहुबली और भरत दोनों यशस्वी और पराक्रमी पुत्र उत्पन्न हुए। परत ज्येष्ठ थे। रिफमेश्वर परत को अयोध्या का तथा बाहुबली को साथिला का राम सौपकर विरक्त हो गए। म स्वल्य ज्ञान प्राप्त हो गया। जिस दिनरानी वाय मान प्राप्त मा भरत की आयुध शाला में "दिव्य चक्ररत्न- उत्पन्न हुआ। परत ने पहले पिता की वंदना करके दिग्वजय प्रारम्भ की। आगे आगे बकरत्न, पछि पीछे सेना। अनेक राजाओं को विजय करने पर जब वे पुन: लौटे वो बक्र अयोध्यापुरी के गर म गया। भरत के मंत्रि में इसका कारण उसके भाइयों को जीना या में नहीं करना बताया। सब की दृष्टि बाहुबली की ओर सई पराब होकर बाहुबली को इसके साथ अपनी बीमता स्वीकार कर पैरों में प्रपाम करने को कहा। सौगाव व उत्कोच मांगे। बाहुबली भी हो गए और कहा रिमेश्वर ने जब सबको मान मरा पर यिा कि एक मा मा हो और दूसरा भाई उसके आधीन, या सम्भव नहीं है।दा को उसने कटकार वापस लौटा दिया। दोनों ओर धीमारियो । निर अप रस की नवी बा गई। तब भरतेवर की ना बद्रपूर और र विवारों में बिनय की।न्द्र ने आकर अवध बंब बामा और मा किमाई माई की पारस्परिकलाईमा मार हो सास: अण्ण हो या हो किन्दा होकर मजा-म विजय
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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