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पद्म पुराण, धनेश्वररि के तथा १२वीं शताब्दी में जयपुरि कति धर्मोपदेशमाला के साथ साथ जिनसेन के आदि पुराण पुष्पदन्त के त्रिति महापुरुष गुणालंकार तथा हेमचन्द के सि जला का चरित तथा सं० १२४१ के सोमप्रभाचार्य के कुमारपाल प्रतिबोध और विनयचंद सरि कत आदिनाथ चरित परवर्ती साहित्य में १४वीं शताब्दी में जिनेन्द्र रचित पद्म महाकाव्य, वर्ग १६-१७, सं० १४०१ में मेरुतुंग रचित स्तमनेन्द्र प्रबन्ध में १४३६ के जयशेवर सरि कृत उपदेश चितामणि की टीका में
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तथा सं० १५३० में गुणरत्न सूरि के भरतेश्वर बाहुबली पवाड़ों में तथा १७५५ के जिन गण के गुजराती "जय रास" में भरत बाहुबली का चरित्र वर्णित है।
वस्तुतः इन दोनों चरित नायकों के वृत्त बड़े स्थान है और यह क्या परंपरा १८वीं शताब्दी तक मिलती है। भरतेश्वर बाहुबली की कथाएं संस्कृत, प्राकृत, अपत्र पुरानी हिन्दी (राजस्थानी गुजराती) आदि सभी भाषाओं में विस्तार से मिल जाती है। प्रन्थों के लिए ही नहीं, भारत के विभिन्न मंदिरों, तीर्थो, स्तूपों, चित्रों तथा अनेक स्मारकों के लिए भी बाहुबली आकर्षण के विवयरहे है। उदाहरणार्थ मैसूर के श्रवणबेलगोल में ५६ फुट के लगभग बी अद्भुत विल्प की कलात्मक बाहुबली की ध्यानस्थ बड़ी हुई प्रतिमा है तथा बाबू की १०८८ की विमलब की किल्प कला में परत और बाहुबली युद्ध के दृश्य कि परतेश्वर बाहुबली राम्र वीर रस पूर्व प्रबन्ध है। प्रेमी मावायों का वीर और इंगार रस कोई परम्परा के काल उन्हें काव्यों की रचना भी करनी पड़ी। रास में उत्पा af मानपूर्ण क्या था वीर रस का स्तोत्र उमड़ता है। इस रास की प्रधान व वीर रस पूर्ण होते हुए
वित्रों में विहार गए है
ति और वि
नहीं मिलता, परन्तु
एक मौलिकता यह भी है कि
१
द्रविशम्बर जैम वाला समिति वाराप्रकाशित ग्रन्थ १प ४० ६२०४५।
गायकवाड़ प्राय ग्रन्थ माता में० १४ में प्रकाशित
३. बड़ी नं० ५८ है का
(गामकथा प्राच्य ग्रन्थ माला)
४- परतेश्वर बाहुबली रात भी गाधी प्रस्तावना ०५६-५६