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की सम्पादित कृति से स्थान स्थान पर थोड़ा मिन्न भी मिलता है तथा इंद क्रम में पी अन्तर है।
___ प्रस्तुत कृति की पयालोचना करने से पूर्व दो और महत्व पूर्ण वातों का स्पष्टीकरण आवश्यक है।एक तो यह कि यह कृति याबीन पश्चिमी राजस्थानी की है तथा इसरी बात यह है कि देश्य पाका और जन भाषा के आधार पर यह कृति पुरानी हिन्दी की है। गुजराती विद्वान इसे पुरती गुजराती की मानते हैं जब कि १५.. वि. के पूर्व गुजराती का स्वतंत्र अस्तित्व कुछ नहीं था व दोनों प्रदेशों की एक ही भाकाएं थी। और यह राम वि०सं०११४१ का है अतः प्राचीन राजस्थानी और गुजराती की प्रथकता का प्रश्न विवाद का विषय ही नहीं है।
परतेश्वर बाहुबली रास के कस्ता विद्वान जैनाचार्य लिभद्र है जो अपने समय के विख्यात कवि थे। परतेश्वर औरबाहुबली दोनों अत्यन्त प्रसिद्ध च दिन नायक राजपुत्र रहे है। इन दोनों से सम्बन्धित अनेक वर्षन चरित कथा कवि यात ही पुराने ग्रन्थों में उपलब्ध हो जाते है।अतः यह परंपरा आगे तक मिलती है।
क्या परंपरा और मरतेश्वर बाहुबली संबंधी साहित्य
परवर तथा बाहुबली संबंधी साहित्य की परम्परा १८वीं सावीक मिलती है प्रायः एकवी है, वर्षन व्या घटनामों में किन्न भी मिeart मी मराका वन को मिलता और बडीगावकी का। नीचे रमानों का विवरण दिया बा ।
सिप प्रतिमान उपाय खूब में परत देश गाय बब्बी परत के .40 की बिका काम है। पर और बाहुबली का अधिकार वर्ष विमल
हरिकृत पाय तिथी गावीपीवासमा रचित बासुदेव हिंडी भामक माबि बोनों गा है। नीं पताम्बी की जिन दासगणि
की प्रामामामा माल्या में दोनों का चरित वर्णन है। दोनों है परस्पर सीबीसनि अन्यों में उल्लेख रविवावा का
. ए बापानंद मधमाला
नि परकिय सचिव
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