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परतेश्वर बाहुबली राम
जैन रास परम्परा में सर्व प्रथम और सबसे बड़ी रचना भरतेश्वर बाहुबली रास है।आदि कालीन हिन्दी जैन साहित्य में यह कृति ऐसी है जो पर्याप्त प्राचीन है तथा जो अपग्रंश की परवर्ती अवस्था और पुरानी हिन्दी (प्राचीन राजस्थानी और जनी गुजराती) के बीच की कड़ी है। परिशीलन करने पर यह कहा जा सकता है कि हिन्दी जैन साहित्य की रास परम्परा का परतेश्वर बाहुबली राससर्व प्रथम राम है।' अमावधि मुनि जिन-विजय जी त्या गुजराती विद्वान इसी रचना को सर्व प्रथम रमा मानते हैं, पर श्री अगरचन्द नाहटा ने शोध पत्रिका में एक प्राचीन राम श्री वनसेन सूरि रचित परतेश्वर बाहुबली पोर" प्रकाशित किया गया है, जो इससे भी प्राचीन है पर रचना अकेली तथा विप्त होने से वहरास प्रवृत्तियों की प्रमुखता का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकती ऐसी स्थिति में परतेश्वर माहुबली रास को ही हिन्दी जैन साहित्य का सर्व प्रथम राम माना जा सकता है।
प्रस्तुत कृति का सम्पादन मुनि जिन विजय जी ने किया रचनाकार की मातिसूरि , और रचनागल • Pun कावरा बिहबान कान्तिक्णिय बी की है तथा प्रति कागज की है। मनुमाम! ..या ५० वर्ष पुरानी होगी। मनिपी का या पाठ पूर्ण प्रामाणि। इसी पाठ को राहत सात्यायम में भी ग्छ यिा।'
बरा करम कालव भगवान गाली दवारा सम्पादित). भी पाधी प्राव विमा मन्दिर की या नामरा मा की श्री विजय धर्म परिबीपाशर पर कवि सम्पादित की है। श्रीगांधी का पाठ पुनि जी
पाणीव विड्या पाम सं. १९९७ -९मिलि मिय। -हिन्दी महाबारावीपावरवाम.6-.01 पर माली राम की कारवाच पगवान मापी प्रकाशनाय विदया