________________
२४१
की पूर्ति करते हैं। इसके अतिरिक्त ब्रज के लोक नृत्यों में रास के सम्तनाथी, ब्रज की चरंकला, ललमनियों,बाबर, फूला नृत्य, नरसिंह नृत्य, ढाड़ा दाही नृत्य आदि लोक कलात्मक नृत्य अत्यन्त प्रसिद्ध है जो रास की परम्परा को भी सुरक्षित करते है। जयदेव के गीत गोविन्द और चेतन्य के कुष्य भक्ति प्रेमलीला वर्णन किसी राम से कम नहीं है।
बंगाल में भी भगवान कृष्ण के रास का म प्रचलित है जिसमें उनका देव ब्रज से भिन्न होता है पर अभिनयात्मकता बड़ी उत्कृपा होती है।
आगाम मणिपुर प्रदेश में वेवका,अभिनय, भावुकता तीनों तत्वों की रास में प्रधानता है। वही भी वसंत रास, नत्रास, और महारास से तीन प्रकार के राय होते है। इसी प्रकार दक्षिण में तामिल, तेलग बन्न मलयालम, आदि प्रदेशों के लोक साहित्य में राय का प्रतिनिधित्व मिल जाता है।वस्तुतः राम की परंपरा आज भी विभिन्न लोक कलात्मक अनेक नृत्यों के रूप में सुरक्षित है। वस्तुतः तत्कालीन अपवितर कालीन जैन रासों का वर्तमान स्वरुप जैन समाज में आज भी प्रचलित है परन्तु उसका आंशिक रूप ही दृष्टिगोचर होता है। दीक्षा के समय जैन अनि का बम श्री के विवाह के मक के रूप में सब क्रियाएं परी की जाती है पर राम नाय और उल्लास के साथ नृत्य पिम अब क गया है। सिर्फ अपनी उन्लास प्रधान अभिव्यक्ति को संगीत मया के माध्यम से प्रकट कर देगी। तीयों बाद में स्त्रियों का नृत्य माथि उल्लेखनीय है वस्तुतः राम नृत्यमादि के प्राचीन भानगड भाग बदलते जाते है। पर जैन पुगियों में रास बनाने और उनको गाकर उनका उपदेश मा माय भी प्रचलित है। राम और गुजरात के जैन नि तो भावी मना कर मारे। रेखालग सा कि माधुनिक जैन रासन मनी प्राचीन मेयर उमदेवात्मक स्थिति को जो हेम चन्द्र से पूर्व थी, प्राण पातारासानी भाषा में जो परवर्ती रास मिले है उनमें
का हो गया है और वे अध बनारमा काम भी मी काल राजस्थानी राखों शव का प्रयोग मागोवा गरम