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________________ २४० जा सकता तथा मतभेद भी है।' नारायण भट्ट, बल्माचार्य हरिदास तथा चमड देव का इसके प्रवर्तकों में उल्लेख मिलता है। ब्रज में इन रास या रात के दो प्रमुख प्रकार है:- १- शास्त्रीय बंधन युक्त तथा १- वास्त्रीय बंधनमुक्त लोकनृत्य जिनको नंद गांव और बरसाना की गुजरियां विविध मुद्राओं में नृत्य करती हुई इल्लीसक का वास्तविक रूप प्रस्तुत करती है जिसमें वाइब नहीं होता ।पर यह गायन बढ़ा ही करुणाजनक होता है। यह नृत्य सम्भवतः समय के प्रभाव से समाप्त हो गया हो। डॅडेलेकर मंडलाकार नृत्य अहीर आज पी करते देखे जाते हैं। ब्रज का शास्त्रीय नृत्य दो प्रकार का है (१) राम और (२) महा राव राम रासमंडलियां करती है तथा महाराम, जो श्री कृष्ण ने दो गोपियों में एक कृष्ण या दो कृष्ण के बीच एक गोपी के रूप में किया था, जब ब्रज की मंडलियां रास करती है तो भरत के नाट्य शास्त्र में वर्णित बीमों रासकों का मिश्रण देखने को मिल जाता है। मान जो क्रम में रास पद्धति है वह ३०० १४०० व से अधिक पुरानी नहीं प्रतीत होती यह मंगलाचरण के बाद सारंगी पहायज, किन्नरी, फं और मजीरा के आधार पर संगीत गाम होता है और सम हृत्य करते हैं। अवधी भाषा में भाव का स्वस्थ के रूप में मिला है। चिकी में हर वर्ष होने वाले स्कुलको १६ के भी है जिसमें अनित्य, बागान ने परिवेश मे और after or after मिलता है और अब के स्वाग भी राम के एक अंग " १- देसिए पारखीवई ४० २०११ पर प्रभुदयाल मित्तल का नारायण मट -श्री मानवी का-जब लोक संस्कृति सं० २००५ २०१३९-४७. कारमानारा वा बारासलीला के पोधार अभिनंदन ग्रन्थ का क्रम भारती वर्ष ५ अंक ४ ०७१३-१७ में नारविन रहन का राखीला के विदेशी दर्शन । देवि का इतिहास भाग १ श्रीकृष्ण व बैंक का बाजपेयी पृ० ११५ पर श्री कुन्नीकाह
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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