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२३३ संगीत ने ही सहायता की है। वस्तुतः उक्त अनेक विद्वानों ने गीत, लय और ताल का महत्व रास या रहसक के लिए स्पष्ट किया है। अतः राम और संगीत परस्पर अन्योन्याश्रित है। श्री श्याम बिहारी गोस्वामी रासकों एक नृत्य विशेष मानते है तथा एक प्रकार का काव्य और उप रूपक भी।' आचार्य हेमचन्द ने तो राख काव्यों में विभिन्न राग रागिनियों की व्यवहति होने से पास के विकसित स्वरुप की राग-काव्य ही कह दिया था। इसके अतिरिक्त "रास जब गेय उस रुपक का प्रकार था तो उसमें अनेक छोटे छोटे उर्मि गीतों का समावेश आवश्यक या और वही उर्मि गीत संगीत के अनूठे अंग थे जो राम नाम से प्रयुक्त हो रहे थे । अतः स्पष्ट है कि राम ने संगीत कला के क्षेत्र को भी उन्नति की ओर बढ़ाया। नक्ष्य और रास:
तत्व,
नृत्य कला का भी रास से पर्याप्त सम्बन्ध दृष्टिगोचर होता है। नृत्य कला को प्रगति के चरम पर पहुंचने वाला मर्तकी या नत्यकार होता है और रात में नृत्य बावश्यक था | अनेक नर्तकी योर्वचित्रताल व्यान्वितम उदाहरण से यह स्पष्ट हो जाता है। हल्लीसक और रासक को हेमचन्द्र ने देशी नाम माला (८६२) तथा धनपाल ने पाइयलब्लीनाम माला ( शब्द १०२ ) में - सामान्यतः गोप गोपियों की क्रीड़ा कहा है"- रासम्म हल्लीसो रासको, मन्डलेने स्त्र्यणा नृत्यं" अतः स्त्रियों के नृत्य का उल्लेख स्पष्ट मिलता है अब तक राम नाम से बनी जाने वाली सब से प्राचीन क्रीड़ा कृष्ण गोषियों की ही रही है। इसी प्रकार नटराज क भी अपने उदूत तड मुत्य विनिवाइयों से स्वयं मुख्य मटेश्वर बहाव बनकर नृत्य करते थे। पर श्री कृष्ण के इस भय राम का सम्बन्ध हास्य नामक नृत्य भी रखता है। आगे राव को को बना दिया गया, ऐसा उल्लेख मिलता है। राज मा लाभ रसपूर्ण गाव ही नहीं, उसमें नृत्य के साथ होता है। परि के शिष्यों ने वीं शताब्दी
में रखे नाम में केन्दों का उल्लेख किया है
और जिसमें
१४ देवि-अक्टूबर १९५७ वर्ष ३ अंक १ ० ५३ पर दीपा बिहारी मोस्वामी का स्वामी हरिदास वीर
१० भाव मेदाद लास्य बेदी बहुधा तवैव नियमेदीनं देवे
प्रवर्तितम्।