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विभिन्न देश्य कवि ही लास्य केभेव उपभेदों में परिवर्तन करती रही है। स्मय बागंधर ने अपने अन्ध संगीत रत्नाकर में सन् १२... के आस पास सौरान की नारियों के रामनुत्य का उल्लेश किया है। लास्य नृत्य भी कालान्तर में रास का स्थान ग्रहण किए रहा। कास्य की इस परम्परा में संगीत रत्नाकर में बर्षित उमा अनिदध एवं अभिमन्यु की पत्नि उत्सरा का बड़ा हाथ रहा है। स्वयं अर्जुन मे ऊपर भी नृत्य राम के संस्कार का प्रभाव पड़े बिना न रह सका। मणिपुर नृत्य लास्य नृत्य का ही प्रकार माना जाता है। सौराष्ट्र और गुजरात प्रदेशों में लास्य या नृत्य की परम्परा अत्यन्त प्राचीन वा स्वरूप में एक ही रही है। सौराप में आप भी रासहा लेवा मन्द प्रचलित है। राम ने नृत्य कला को पगत सहायता की है। संगीत की पान्ति मृत्य व मभिनय रामक उत्तरकालीन समय में एक दम अन्योन्याश्रित है।यह भी संभव है कि नृत्य की अनेक कलाएं बाय
या संगीत रासक में समाविष्ट थे। अत: रास मे लास्य को ब कास्य मे राम को परस्पर बड़ा ही मल प्रदान किया है। अस्तु नृत्य क्ला भी रासक का प्रमुख ससा
( दों की दृष्टि से
रामका बयान छंदों की इष्टि भी किया था war ma नाइदी मक के रास मेब म में इने अभिप्रालिका मावि ही कामया। बों विधानों में बात का विक बनेको ग माहार किया। मा स्पष्ट परम्परा अनेक राधों की इष्टि श्री सिने
नागारवा देश में प्रयुक्त रास और इस प्रकार की इष्टिका राम कालाने वाली रचनाओं के बि विकार रवि माटी समई। ध्यान से देखने पर यह लाता
राप्रपा प्रबक्स मा राम पद के इस प्रभाव कवीमनीमाया या विषया उनके नाम में ही भा गई और
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- गुजराती बालिया स्वोरमबार,.nn