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(जब तक कि रास रासक, अपभ्रंश काल में नहीं पहुंचे) उसमें उक्त तत्वों कह समावेश आंशिक अथवा स्पष्ट अस्पष्ट अनुपात में अवश्य मिलता रहा है। संस्कृत काल के इस रासों की परम्परा की एक महत्वपूर्ण कड़ी राजस्थान में उपलब्ध विक्रम सं० ९६२ का रिपुहारण रास है। जो अद्याबधि उपलब्ध रासों में सबसे पुराना है और यह रास संभवत: हेमचन्द्र से भी बहुत पहले का है। सक के शिल्प पर राजस्थान में उपलब्ध होने वाले राम्रों में प्राचीनतम होने से यही अच्छा प्रकाश डालता है, पर अभिनय, नर्तन और गान ये तीन तत्व रिपुहारण में भी मिलते हैं। अत: राजस्थान में मिलने वाले रासों में प्राचीनता की दृष्टि से भले ही इस राब का महत्व हो, पर शिल्प में इसका कोई नवीन योगदान नहीं लगता ।
ऐसी स्थिति में अपभ्रंश व जयवेवर से दो काल ही ऐसे हैं जिनमें राखी के अनेक प्रकार मिलें। राय में विशाल संख्या में विविध मान बढ प्रस्तुत कले वाले रास ग्रन्थ उपलब्ध हुए है। जिनके शिल्प में संस्कृत तथा प्राकृत के रात ग्रन्थों की अपेक्षा अधिक प्रगति व नूतनता है।
राइ, लकुटा या लड्डा रा
उपदेश रसायन रास के पक्ष में वाला मामक दो प्रकार के राखों का उल्लेख मिलता है। कर्पूरमंजरी में भी वाला राड और लड़डा रात का है। डा० ०पी० मानेल ने वालियर बा
की एक पेंटिंग में चित्रित
डा राय का वर्णन किया है। इससे यह स्पष्ट
१- देखिए, मध्यारवी, वर्ष ४ अंक 3 में खिवार राम निर्वणः डा० वर शर्मा, ५०५७ १. वाई १९५१ में बीके का विकास- डा० दशरथ शमी ३- बालाराह विदिति स्वविति विमतिदि का विडि०२००६ दम्य माबोवीसदि राम्रो (11) कडा खु बहि पुरिव विवि मावि र मंजरी ४।१०-२० ।
४. बेदी
4- We now come to the fourth s eene plate D. consisting of a double group of female musicians. The left hand group comprises seven women standing around an eight figure, evidently a dancer. The next three musicians are each engaged in beating a pair of vooden atteks called dania in Hindi and Tipri in Marathi, Painting by br. 3.Ph. Vogel. Page 49-51.