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होता है कि अपभ्रंश काल में राम क्रीड़ा में तालियों और इंडियों में खेलने की प्रथा पी प्रबलित हो गई थी।
कालान्तर में राम कीड़ा के सम्बन्ध में यह भी उल्लेख मिलता है कि जैन मन्दिरों में श्रावक आदि लोग रात्रि के समय में तालियों के साथ(बाल देकर) रायो को गाया करते थे। उसमें जीव हिंसा की संभावना के कारण रात्रि में नाला राम का निवेश किया गया है। इसी प्रकार दिन में पन्नों का स्त्रियों के साथ डा रास करने (इंडियों के साथ नृत्य करते हुए राम माने) को भी अनुचित बनाया गया है। जैन मन्दिरों में रामवीं शताब्दी के जाने' एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि उपदेशों के गैग मों को भी, जो जैन मुनि प्रस्तुत करो थे, राख क्षा दी जाने लगी। उपदेश रसायन राम में जिमदत्य पूरि के अनेक मेय उपदेश राख बन गए है। स्त्री और पुरुषों के एक साथ रास नहीं चलने के जो उल्लेख मिले हैं, उनसे यह बातो स्पष्ट हो ही जाती है कि राम किया अयंस और अपरिवर कालों में स्त्री पुरुष दोनों वर्गों में समान उत्साह के साथ सम्पन्न होते और राम विशेष अवसरों पर जनता उल्लसित होकर ली थी। महा मृत्य और गीत तत्य राहों में समान अनुपात से वीं बतादी तकदेखने को मिलता है। यही मा प्राम बालाकि
कित्यनारी, कतार में राम मात्र यो समगा। मृत्य किया क्योंकि हो म. कारण राणे रमा परिशीलन र मिल नामा है। मपविर का न गिन उपदेशों को देख भाग में मर पापारण को मागार मा, उनकी सीटी मीयों और परीक्षक उपदेशात्मक रमाए पोरे पोरे राज बनती गई। गानों को म प्रधान बीवन बिताने से विशेष गया औरराम सब नियनी राय रखना पड़ता था अतः मृत्य का बत्व पोरेगर गिने मा परम्परा के कारण वे मीडिया इनी पनी होम
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मागि ...m- मरद माहाकाल ... मन जिनेश्वर रिकवावक बहू रविड बम्बकत्वमाइपई