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परम्पराओं में सम्भवतः किसी समय परस्पर सम्बन्ध हो गया।
पर यह तथ्य कहा तक सत्य है, यह नहीं कहा जा सकता, इस सम्बन्ध में अन्य कोई अन्य प्रमाणों और अनुतियों का भी अभाव है। इन दोनों बातों मैं इल्ली तक के उद्गम बाली बात तो संदिग्ध ही विवाईपड़ती है, का यह अवश्य कहा जा सकता है कि रास नृत्य का सम्बम्ब संभवतः किसी जंगली जाति अथवा गोष जाति से अथवा महीरों आदि से हो गया हो। जो भी हो, अब तक इतना अवश्य स्पष्ट हो गया है कि बाण के समय तक रास में नृत्य के साथ मैय तत्व घूर्णतया प्रचलित हो गया था और इल्लीसक या रासक के शिल्प में उक्त सभी faarat के विचारों में युगल, लयो तालों और गोप गोपियों का सम्बन्ध परिलक्षित होता है। अतः रास के अमंद काल के पूर्व मुख्य क्रीड़ा कप और गेम रुप डी अधिक प्रचलित प्रतीत होते हैं। श्री मद्भागवत में कई वर्जित कडे स्थल राम के मेव रूप की पुष्टि करते है। रास शब्द का प्रयोग भी दृष्टव्य है तथा कुछ श्लोकों में तो रचनाकार ने रास में संगीत व रागों का उल्लेख कर दिया है। पद राग पर भागवतकार ने उस प्रसंग में प्रकाश डाला है।
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संस्कृत काल के पश्चात राम्र में इन गाँवों का समावेह दिन तक बना रहा, यह कहना बहुत कठिन है तथा साथ ही यह भी नहीं बना उसके शिल्प में उक्त तत्वों से इतर किन अनुपात में, पर इतना अवश्य कहा था स्काई कि बाकी कई
यों का बनावेश हुआ, और वह भी किय
क
१- नही ग्रन्थ
३२-२३।
(अ) बना रमे मीनिंदो कीड़ा (4) रामोत्सव संप्रवृत्तो गोपी (४) विनाको रास श्री महमागतः ३-३
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३ (अ) स्किमररमा य
या विरेजुः वहीं ॥८||
मग मार्ग व वडवदातः वडी । लोक १०॥