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मिभंगी- त्रिपदी-सोरठा तथा सोरट्का-हरिगीतिका-पादाकुल-फागु वार्षिक वृत्त और उनका वर्णन-दुतविलवित-मालिनी-उपजाति- बसंततिलकारथोधता- नाराच-अधनाराच- रागों में पुष्ट देशी छन्द तथा उनका विकास करने वाली महत्वपूर्ण कृतिया-देवी न्दों का स्वरूप त्रिभुवन - दीपक प्रबन्ध-भाट्ट- दुपद-आन्दोल- पासा-अडइया-विद्या विलास पवाड़ो में प्रयुक्त विविध देशी इंद-विभिन्न रागै- राम संभूर, रामगिरिवीवाहला-मीमपलासी-हिव विधामगड डाल राग देशक-सरतरगच्छ पट्टावली-प्रथम श्री धवल राग- राज बल्लभ सबैया की देशी-राग यात्रीविभिन्न रागों में प्रयुक्त संगीत प्रधान देशी छन्द औरउनका पविष्य- रोध की पर्याप्त अपेक्षा इन दो का परवर्ती कालों पर प्रभाव- ये प्रभाव दो
मों में. काव्य पद्धतियों तथा छन्द पद्धति में-काव्य पद्धतियोमि- दोहा पद्धति- दोहा बौपाई पद्धति- हाप्यय पद्धति- पद बोरगीवि पधतिया. तथा हद पद्धति में वर्णिक और मात्रिक दोनों प्रकार के इन्दो वारा पश्तिकाल-रीतिकाल- तथा अधुनिक कालों पर-इन छन्दों की देरी लोक परंपराएं और उनका परवर्ती कालों में प्राण-निवर्ष- ( ० ६७० - १०२०)
प्रभाव
उपहार
माविकालीन हिन्दी जैन साहित्य परिशीलन- उसके प्रमुख तथ्य(.) जैन कृत्रियों के अध्ययन की अपेक्षा-प्रभुन गई पुजराती और राजस्थानी विद्वानों वारा-दिी के विद्वानों की इस बार अपेवा-इतिहासकारों के लिए आवश्यक मामी-अब प्रध से इस भोर पूर्ति का प्रयास- (२) मा और समाजतत्कालीन स्थितियों का काव्य रचना में योग- समाज ने निर्माण में बीमा (1) जैनधर्म के प्रमुख सिद्धान्त, इन विधान्तों का साहित्य प्रस्न में योग, मरस क्यामों एवं बाल दिवों का आधार-रमानो मानिक तत्वों