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का विश्लेषण क्याओं के द्वारा:(४) अपज का जैन साहित्य- उसकी प्रमुख विशेषताएं तथा उसका अध्ययन (५) आदिकालीन हिन्दी जैनेतर लौकिक साहित्य, भाव एवं कलापर, साउली कान्हड़ दे प्रबन्ध-बसंत विलास फागु- गोला मारु रा दोहा, रणमल्ल छद, सदयवत्स-रुक्मणीमंगल-आदिः, (1) काव्यपरंपराएं. प्रमुख गौम, स्तवन और गद्य परंपरा तथा इनके अन्तर्गत आने के काव्य रूपों में वैविध्य और विशालता (७) स्था परंपराएं और क्या हिया उनका वैविध्य और विश्लेषण (0) आदिकालीन हिन्दी जैन साहित्य में प्रशुक्त पद-तालवत्त और मात्रावृत्त-संगीत में इन कृतियों का भोग देशी छन्दों का विकास और इन कृतियों द्वारा देशी दो के क्षेत्र में मौलिक अनुदान (९) बोध की नई दिशाएं- पुरानी हिन्दी का उदभव और विकास। आदिकालीन हिन्दी रचनाओं की भाग-आदिकाल के रास, कागु, प्रबन्ध, चरित मुक्तक काव्य श्रृंगार तथा संड शो का वैज्ञानिक सम्पावन, मध्यकालीन हिदी जैन साहित्य की सम्यक शोध की अपेक्षा ( हिन्दी साहित्य को इन कृतियों की देव- हिन्दी साहित्य के विविध कालों और उसकी काव्य कृतियों या काव्य मो पर प्रभाव; भाव और कला पद की सबलता: हिन्दी साहित्य को इन कृतियों की देन- विभिन्न अंडारों शोध की अपेक्षा (१०१०२१- १०२९ । - परिशिष्ट-.: आदिकालीन हिन्दी जैन साहित्य में प्रयुक्त अक्षर, बैंक एवं
प्रवियों के चित्र ज्या परिका . .१-१७ ) २ परिशिष्ट- १ : बाविकालीन हिन्दी जैन (प्रकाशित तथा अप्रकाशित)
इसलिखित रचनाओं की सूची - (पृ.१५-१६ , 1- परिशिष्ट-: सन्दर्भ अन्य बी.च्या मंडारों की सूची. ( ७-५७)।