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साथ ही इनके शिल्प में अपेक्षाकृत पर्याप्त परिपक्वता है।इन कृतियों का वर्गीकरण व प्रधान- प्रबन्ध काव्यों क्या विषय प्रधान प्रबन्ध काव्यों में भी किया जा सकता है। दोनों प्रकार के काव्यों का प्रमुख अध्ययन निमनाकित क्यों में प्रस्तुत यिा जा रहा है:(अ) रास (ब) फा (स) सम्पादिका गा चउपई (२) वर्चरी (क) प्रबन्ध (स) चरित (ग) विवाहली (1) सन्धि (४०) पवाको (च) कक्क मातुका।
(२) गौण काश्य परंपराएं:
दिवतीय परम्परा गौण काव्य की है। ये काव्य बहुत ही महत्वपूर्ण तथा मौलिक है परन्तु प्रबन्धात्मकता, पटमा कौतुहल वा बस्तुशिल्प की पुष्टि सामान्य है। हा काव्य यो तथा वैविध्य की दृष्टि अत्यन्त महत्वपूर्ण है। ऐसी सब रचनाओं का अध्ययन गौण काध्य परम्पराओं के स्तर्गत लिया गया है। इस गौष काव्य परम्परा के अन्तर्गत आने वाली रक्ताओं को पी छन्द प्रधान और विषय प्रधान वर्गों में विभक्त किया जा सकता है। इस रकनाओं में प्रमुख गमन है:- व प्रधान- दोहा, सब, अध्यक, रेमा गाभा आदि
विषय प्रधान:- इनरवनाओं प्रमुख महात्म्य पोर, पट्टीवली.बारहमाग
बलारा, सम्बोध और वाय बाधित (२) सक्न गब्ध परंपरा
बीबरी परम्परा भवन कायों की साम्य परम्परा में आने वाले काका मी अपनी प्रवर क्लि fo tस प्रमुख काय कम इस प्रकार:( उत्था
सोच (1) स्तवन (५) बोलिका (6) स्तुति (७) वीनंती Or (१) सकार(10) प्रशस्ति (1) सन्भाय मादि