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________________ २१९ arfarota हिन्दी जैन साहित्य की (१) प्रमुखकाव्य परम्पराएं PRFFFX PF d PPTET आदिकालीन हिन्दी जैन साहित्य की सबसे बड़ी विशेषता उसके स्वरूप के वैविध्य की है। यह वैविध्य वर्णन परम्परा, छेद राग, काव्यप आदि पीप में देखा जा सकता है। इन सभी काव्य स्यों का विभाजन नीति प्रकार से किया जा सकता है: (१) आदिकालीन हिन्दी जैन साहित्य की (२) आदिकालीन हिन्दी जैन साहित्य की (२) (३) मादिकालीन हिन्दी जैन साहित्य की (३) (४) भाविकालीन हिन्दी जैन साहित्य की (४) ) प्रमुख काव्य परंपराएं गौण काव्य परम्पराएं स्तवन काव्य परम्पराएं गट्य परम्परा । (१) प्रमुख काव्य परम्पराएं : प्रस्तुत परम्परा में जितनी जैन रचनाएं अद्यावधि उपलब्ध हुई है उनमें उसका में घड़ी महाकाव्य की संज्ञा से कोई अभिहित नहीं की जा सकती। अतः इन/रचनाओं को एकार्थ काव्य कहा जा सकता है वर्थ वे काव्य, जो एक ओर तो काव्य की सीमा से ऊपर उठे हुए है, औरदूसरी ओर विस्ता परिसर और प्रबंधात्मकता की इष्टि से उन्हें बैडकाव्य में भी होता है। भावों को vor काव्य ही सबका जाना कि इन नामों में कि किसी गई है। इनमें रिनों का पिनाना कोट, गौकिया कय वैशिष्टय मादी पूर्ण कर भी महाकाव्य नहीं कहा सकता। ऐसे 6 में इंगारिक काव्य, बरितकाव्य मायाका बादि लिखे है। देवी महत्वपूर्ण रचनाओं में प्रबन्ध और प्रेम प्रकार की जाती है। हम रक्तायों का वजन परमानवक काव्य परम्परा में रचा गया है। रचनाओं को है कि मे काव्य विमोनों इन्दियों से प्रमुख है
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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