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(a) महाराजधिराम श्री कान्हड़दे मना पूरी बइ हासिंहासनि पाउ
परन्डि.छइ ।मेषवमा उलब नाघ्या । परीयछ बली छ। केतकीना गंध मगहीया छ । बोरपना सर गंधरिय छाइमा माहि मेरी मेहाणी दाइ। जाइबेठी वाळ पाडलना परिमल पंचवर्ष पुष्यवादिना प्रकर पारिया
हा मुल्लामना गंध गामडीया डापडीया कपूर पाए बंपाइ हायोग बड़ी बाला पालीमा डाहाथियानी पारसी भापति बानि पडिई कार नवी संपलाडापंच पद बजिम बावा छह गिल्या पील रवावी बना पदावज घाँकार करइ नृत्यकी पात्र मूल्य का बवित न पिर पंचवर्ष वाजिन बाबा पंचवर्ष छत्र धरिता हावार यिाना बिड पधि हुई मारम प्रधान सामंत मंडलीक मुस्ट वर्दघ श्रीपरपावइ
परमा धादिकरमा मसारणी बावरी बारदीया पुरुष वा हा इस प्रकार इस महाकाव्य में प्रयुक्स इन गद्यात्मक उधरमों द्ववारा रबमा मन माग की सम्पन्नता का अनुमान लगाया जा सकता है। कान्हड़ दे प्रबन्ध पद्मनाभ की एक प्रौढ रचना है जिसमें प्रयुक्त इन गांवों में भी पहब की पारि बाबाह सबा रखता है। निळ: उस उबरयों एवारा बाकिातीम नि म रमावों में मड्य साहित्य विकास का मास्कवृष्टि म्यान
। अचल दास बीपी निका
माविकास की भरमारनामों में बार बीवी री बरनिका एक महात्मा कवि
पि कवि शिवदार खारा लिखी हीरना पड़ा और बोयों मोतिरी हुई है।पूरी कृति एक