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मी उल्लेडनीय है। भाग कविने अथ माउली शीर्षक के अन्तर्गत रखा है। मध्य के काक्य छोटे, शब्द पैने तथा सारपूर्ण है। इस काव्य में प्रयुक्त गदय की सम्पन्नता का परिचय प्राप्त करने के लिए कुछ विभिन्न उदूधरम इष्टव्य है:
(१) कंठलिया किया। मंडार भरीया । आलोचि आत्मानइ माया ।
मंत्र मुहाद्धि हुई शिव सीममण हुई। पूरा सुगट वित्री ने परे घोडा पाठकया। छत्री वर्ग तथा मोड़ा। किस्या किया घोड़ा ।--
(२) विशेष गीव करइ । मनस्यूं बाला। पवनस्यूँ तरह पाटीर पन देई तरह
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म पनि घर समुद्र माहि वस्या कवटी क्या ते घोडा पृथ्वी कुरताला । ते राउते चालते । हस्ती गुडीया । दूयषापरीया । रथ जूता राउत बडीया । समाह लीचा । किस्या किश्या बना जीवात जीवरमी | बंगरकी ।
कमी वांगी । लोड टूटि ।
छत्रीस दंडा यु हीथी। तेडे राउवे चलते बंदीजन बिरदावली नोल छ । सूरा राउत बडीया | हाथी हाथीयां थोड़ा घोडां । पाठापालास्यूँ ।
गावाटका पेडा उमा घाटक |वस्थारि मा फाटकानुष वमा चौकार भणीतया अंगार स्वामी दृष्टि। इसी दूरारापरि सौर्यवृत्ति।
महाराज कान्हड़ दे के नगर और बरवार का वर्बन कवि ने मम में बड़ी ही संवार के साथ किया है। वर्णन की माता के उदाहरण देविय
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श्रीनगर जाकर वणी रचना का मढ मंदिर मोति पार मट्टीया वालीयां दोन निव
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यूडीया क्याथ मनाविधि वाली मुख्या गिरी धामंती | पविवध काचबद्ध पिलीया री काकीवर चूना लूज । शत भूमिका सहस्त्र
का भी वना ।
उदाहरण के लिए४१-४८