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________________ भागे जिन नेतर कृतियों का विश्लेषण किया जा रहा है उनमें अधिकतर कृतिमा अत्यानुप्रास ली अथवा गा काव्यात्मक वनिका अली में लिखी गई हैं, अत: इन रमाओं पर गड्य काव्य मूलक शीर्षक के अन्तर्गत प्रकाश डाला गया है उपलब्ध नेतर कृतियों का परिक्य अग्राक्ति है: अने तर (लौकिक) मद्य रचना गय काव्य मूलक: नेमल्य कृतियों में गद्य काव्य की शैली में लिखी कई महत्वपूर्ण रमाएं उपलब्ध होती है। गद्य काव्य की यह परंपरा १०वीं शताब्दी से ही प्रारम्भ होती है और वीं शताब्दी से लेकर १५वीं साब्दी तक मिदी की विभिन्न प्रादेशिक भाषाओं में अनेक रचनाएं गम काव्य की औली में लिखी गई है। इन रमाभों में प्रयुक्त गद्य (जन कवियों द्वारा रचित कुछ ही रचनामों को तोड़कर) बत्यन्त, सरस, सबल तथा पर्याप्त महत्यका है। जैन तर मल के अव अद्यावधि मिनी भी रचनाएं मिली है उनमें से किसी भी रचना का पाठ जैन रचनाओं के पागोर बा शिक्षित नहीं है। इस ओर चिनी पी रमाएं पिली है उनमें बना मिपी मेरी इसमोर पाच दोष की अशा परिचित होती है। गाय की सी यावधि मिली और रक्षा उपाय होगी म विच परिचय को दिया जा रह न रचनावों दीमे विभिन्न प्रादेशि पानों -नाली-काठी बा रामस्वामी.वादिमी की लौकिक रचनाएं है। Internatी मला माहित्य में मदद कान्य की परम्परा को १० मा वाम्मी परम्परा-हिर देसि प्रमगव्याव
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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