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________________ १९६ सबसे प्राचीन गद्य रचनाओं के रूप में अनेक उद्धरण विभिन्न लेखकों ने दिए हैं जिनमें अधिकांश उकारण प्राचीन राजस्थानी के जैन गयकारों के हैं। ये समी उद्धरण प्राचीन गुजराती व संदर्भ में प्रकाशित विविध जैन कृतिकारों की कथानों के है। वस्तुतः हिन्दीसाहित्य की गय परंपथा का प्रारम्भ जैनेवर और भजैन रचनाओं से वीं शताब्दी माना जा सकता है।१०वीं से १५वीं शताब्दी तक आदिकालीन हिन्दी साहित्य में य की अनेक अजैन और जैन कृतियां उपलब्ध होती है। यहा आदिकालीन प्राप्त बन कृतियों पर प्रकाश डाला जा रहा है। Wy जैनैतर रचनाओं में अद्यावधि जो कृतियां उपलब्ध हुई है उनमें पालवी, मिौली, राजस्थानी आदि विषावानों की है। मैथिली में प्राप्त गइब की रचनाओं में सिर्फ वर्णरत्नाकर पर ही प्रकाश डाला गया है। बहुत संभव है वर्ण रत्नाकर की भांति मैथिली में लिखी गई और बम्पन्न गदय की कृति क्या नाटक आदि रूपों में प्राप्त हो । अतः यहां उपलब्ध गजेन नववा लौकिक मय की कृतियों में से कुछ प्रमुख प्रमुख रचनाओं का ही परिचय दिया गया है। इन रचनाओं द्वारा हिन्दी साहित्य के आदिकालीन गद्दय की परंपरा में १०वीं शादी से लेकर वीं शताब्दी सक्के गय के स्वरूप का अनुमान सहज ही लगाया जा सकेगा। रचनाओं के विश्लेषण में अधिक उदूचरम इसलिए आवश्यक कर दिए जा रहे है क्योंकि इनमें निविष्ट कृतियां मावधि मौकाकादित और हारों में है। * बीड साहित्य के कालीन म प्रकाच डाला गया है उसके क्रमिक विकास को इमनेटर व प्रकार से समझा बा सकता है। परंपरा पर उक्त जितना रचनाओं तिमीमा के मय के विविध उदाहरण ० २४८-४ १० प्रा० मु०म० सम्पादक मिनि जिन विजय । बैंक ३ सन् १९३५ हिन्दी का महाि मेंटल विविध प्रादेशिक पा
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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