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पुष्ट करने वाली अजैन रचनाओं में अद्यावधि उपलब्ध लगभग सभी रचनाओं में प्राचीन १०वीं शताब्दी का एक शिलालेख है। यह जिला लेड हिन्दी साहित्य मैं काव्य की परम्परा का श्री गणेश करता है तथा हिन्दी साहित्य में पद्म और गम की रचनाओं में सबसे प्राचीनतम है। काव्य के रूप में इस शिला लेख का ग भाग लिया जा सकता है। रचना राउल नायिका के नववि के सम्बन्ध में है। इसका गढ़ काव्यात्मक प्रवाह से ओतप्रोत है। मद्रय काव्य की परम्परा के उदभव और विकास सूचक रचनाओं में वही जिललेस सबसे प्राचीनतम है। अतः हिन्दी साहित्यगय काव्य का प्रारम्भ करने वाला यही शिला-ब कहा जा सकता है। रचना का गद्य राजस्थानी भाषा की एक उप बोली मालवी में है। इस रचना का में अधिकांश मालवी के हैं तथा अपभ्रंश का विक प्रभाव मिलता है जो परम्परा का प्रभाव कहा जा सकता है।
गय की प्राचीनता और सम्पन्नता की दृष्टि से नादिकालीन की हिन्दी अजैन रचनाओं को परम्परा के रूप में प्राप्त होनेवाला सबसे सम्पन्न वही गय है जो बम्बई के प्रिंस आफ वेल्स संग्रहालय के १०वीं शताब्दी के एक शिला लेख से उपलब्ध हुआ है। यह जिला लेड मध्यावधि प्राप्त होने वाली गढ़व औरषद्यात्मक रचनाओं में सबसे प्राचीन है। इसकी पाका कोट होता है कि यह रक्ता १०वीं शादी की ही है। वह दिला व रावक नामकी एक नाविका के सजा वर्णन का है और वर्णन कार में विवाह करके आई हुई नाविका के नहि का वर्णन किया है। इस फिला ठेव के द्वारा उसके ले के विषय में कोई भी तय नहीं
मिलवा |
कवि ने का क्या मत वर्णन पद्म में किया है और फिर म का वर्णन की बहन के वर्णन सेवयाप्त साम्य रखता है।
१- के विस्तृत परिचय के लिए देखिए प्रस्तुत का समान ११