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________________ १८८ (२) आदिकाल की जैन तर (लौकिकागदय रचनाएं। प्रममिः हिन्दी साहित्यमें गद्य के उमव का प्रश्न भी तक समस्या बना हुमा है। आदिकालीन हिन्दी साहित्य की जेनेतर (लौकिक) गद्य रचनाओं पर विचार करने के लिए हिन्दी साहित्य की गठ्यपरंपरा का पृष्ठभूमि के म में परिचय प्राप्त करना आवश्यक प्रतीत होता है। इसके लिए हमें अजैन और जैन सभी विविध स्त्रोतों द्वारा हिन्दी साहित्य के गठ्यके उदभव के अंकुर खोजने होगे अशावधि हिन्दीगड्य साहित्य का उभव १४वीं शताइदी से ही माना जाता रहा है।परन्तु आदिकालीन साहित्य की इस रोध द्वारा प्राप्त १०वीं सताब्दी के शिलालेख अनेम) और ११वीं शताब्दी की खनपाल क्था (जैन) आदि प्रौद रचनाओं के आधार पर हिन्दी मइय की परम्परा का प्रारम्भ १०वीं शताब्दी से ही माना जा सकता है।अद्यावधि विद्वानों में जो पूर्व मान्यताएं गय के उदभव के सम्बन्ध में रही हैं उन पर पृष्ठ भूमि के म में यही संक्षेप में विचार किया जारहा है। जिससे आश है गद्य की परम्परा के उद्भव को समझाने में सहायता मिलेगी । हिन्दी साहित्य के मदय की परम्परा मिन्दी साहित्य के प्राचीमत मझ की परंपरा फूल स्त्रोत हमें संस्कृत और प्राकृत की रचनाओं में मिली है।स्कुल गम, वैदिक संस्कृत के साहित्य से ही मिलने लगा है वैदिक काल बस की वनाएं हुईऔर उसका महत्व पूर्ण स्थान भी था। that में बड्स को प्रधानवा दी है।प्राइमण ग्रन्थों में हमें पा का मान गया या विशाईपड़ता है जबकि उपनिषदों परि बोर पस लेवा है। स्थिति का बिलौकिक संस्कृत में गड़ब की प्रति महीं मिलती। रामायण और काधारानी पल को प्रधानता मिलीपरन्तु उसके बाद अधिकार गामिय मन में लिया है।सूत्र साहित्य में दो पक्ष्य के
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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