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________________ १८७ गढि संडि पढ़ती मागुरणि, विह राते सुरिताण क संसारिनाम आम सरंगि, अचल बेवि कीथा अञ्चल (१२१ ) रचना की प्रतिलिपि का प्रमाणिक वर्णन रचना की पुष्पिका में मिल जाता है। इस प्रकार पूरी रचना १२१ पट्टों में पूरी हुई है। बीच बीच में कवि ग रैली में भी पर्याप्त वर्णन करता है। वस्तुतः पूरा काव्य वीर रस की एक उत्कृष्ट रचना है जिसमें कवि ने वीरपूजा और जोहर द्ववारा उत्कालीन समाज की पारस्परिक युद्ध नीति राजबूतों की स्थिति, आत्मसम्मान की रक्षा के लिए जौहर एवं मृत्यु वरण, युद्ध प्रेम आदि प्रवृत्तियों को स्वष्ट किया है। वास्तवमे अचलदासखीची वचनिका जीवटपूर्ण वीर गाथा का जनैतर (लौकिक ) काव्य है। अद्यावधि जैनेवर जितने भी काव्य मिलैहैं, उनका विवेचन उक्तपृष्ठों में प्रस्तुत किया गया है जैनेवर रचनाओं को वस्तु शिल्प भाव बी, माया था वर्णन की विविध पद्धतियों की तुलना का विकालीन जैन कृतियों के साथ बता दे की जा सकती है। वास्तव में उपलब्ध जैमेतर (लौकिक) काव्यों का शिल्प, वर्ण प्रवाह, भाषा त्या विषय का सुन्दर समाहार एवं बतियावन की क्षमता इन काव्यों में परिलक्षित होता है। बोध होने पर हिन्दी की प्रादेशिक बोकियो और भी अनेक आदिकालीन तर काव्य मिल सकेंगे, ऐसी बाया है। १- संवत् १६३१ वर्षे पावन दिन लिटि ११ प २५ विवा घटी ३१४४ ब्रह्ममामा बोगटी ५४।१०वास बीची री वचनिका महाराजा विराज महाराज श्री राम सिंह जी विवराज्ये पाविवाणी मी मध्ये महाराजा विराज महाराइ श्री जोधा सत्य राज श्री बीदा तत्पुत्रराज श्री संसार बंद राज श्री सांगा का राज श्री हाक दास लिहिलायें । यं भवतु कल्याणमस्तु ।। श्रीरामचन्द्र जी (प्रतिलिपि अभय जैन ग्रन्थालय, बैंकानेर के संजय से)।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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