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इस प्रकार लोक काव्यानक प्रेम गाथाओं में ढोला मारु रा दोहा काव्य का स्थान अप्रतिम है।
अचलदास बीची री वचनिका
जैनेवर काव्यों में १५वीं शताब्दी में लिखी प्राचीन राजस्थानी की एक विष्टि कृति अचलदास सीबी री वचनिका है। इस वचनिका की हस्त लिखित प्रति जन्म संस्कृत लाइब्रेरी, बीकानेर में सुरक्षित है। पूरी रखना एक ऐतिहासिक काव्य है जिसमें कवि में बास शैली का प्रयोग भी किया है। काव्य की पति वाली के जाने वाला यह गम भाग मी पण महत्व का है जिस पर आगे प्रकाश डाला जायगा। यहां कृति का काव्य की दृष्टि से ही जा रहा है।
दिया
अचलदास बीबी री वचनिका के रचयिता श्री शिवदास है शिवदास बारण
राज्याश्रय रहकर ही उन्होंने यह बचनिका लिखी। कोटा राज्य के वर्ग गागरोन के शासक श्री अचलदास बीची ही इसके आश्रयदाता थे।कवि शिवदास का समय टीड तथा टेस्सीटोरी सं० १४७५ मानते है और मोतीलाल में नारिया सं० १४८५ । जो भी हो, यह निर्व्रीत है कि रचना १५वीं शताब्दी के उत्तराईच के तृतीय गरम की है। इस रचना की प्रतिलिपि अभय जैन ग्रन्थालय में भी है। स्वमत १२१ छन्दों में पूरी हुई है।
अलवार बीवी री बनिया एक वोर्थ मीरमान भीदा से भरा बीररव प्रधान काव्य है जिसने कवि के स्वयं युद्ध में उपस्थित रहकर भास देते रोश्चक चित्र यथार्थ है महदा समन्वय करके किया है।
कथा मामः
संस्कृत क्यनिका एक सुक्ष प्रभाग
मान्य हैजिसकी क्या ऐतिहासिक है। पूरे काव्य कृतिकार में निवास की मामीरता के अनूठे चित्र उरहे है। मांडू के इवान में मन को अपने अधिकार में करना चाहा लवास
१- प्रति अनूष संस्कृझेरी बीकानेर में दूरविड ।