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को आधीनता स्वीकार करने को बाध्य यिा। राजपूती न जबत पड़ामयादा की मुस्कान और समनी जन्म भूमि की रक्षा में राजपूत तत्पर हो गए।अचलदास ने अध के लिए ललकारने का संदेश या प्रथा आजमग को रोकने के लिए किले के द्वार बंद करवा दिए।
दोनों बलों और प्रापकर मारकाट के बाद अवलवास स्वयं वीर गति को प्राप्त MARATE के बलिदान से भूमि रंग गई। सभी राजपूतों ने जौहर कर अपने प्राणों भाइति दी।कवि श्री शिवदास चरण पी बुझ में अपने भाव दाबा के साथ थे। जय रावपूों को गौर करना फा परन्तु राजकुमारों के जीवन निर्माण के लिए तथा अपने आश्रयदाता की इस वीर गति को वापी देकर अमर कर देने के लिए शिवदास को गौहर से मुक्त होना पड़ा। औरक्योंकि यह युग कि. १४७५ बारपास ही मामा बस: इस रचना का प्रजन भी इसी समय में या होगा।
अबलवास झीची री वरमिका का वास इस इष्टिको भागों विषक्त खिा जा सकता है। एक बो अइच भान और इसरा जौहरराइविद्यास सामान्यत: कई प्रकारे मा भने । पन्त कवि शिवदास ने स्थान स्थान पर विशाल बत्वों की रक्षा कर का भाव बार किया है। मही महीने ती पिल्यक्ति को ईमानदारी सेवामी मार के बादशाह कीमापा वीणा वर्णन करने वाली हनिमारकी रमा ।।
पूरी कविता और बार बोलो जी मई है। में बयानका सीव गीत। वासी काम मे बा का रोमागिय की काम्यात्ममा जाप ग्दाहरण है। ना
पालिसी कई है। सत्कालीन रकार्य वन की नगर और दो विकली । केसों में पीर मोवीपी ।