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________________ १७४ सबिए ऊगट मा जिएल विजमति करs अनंत मारु तन मंडव रच्छ मिलन सुहावा केस 1143411 धम्म घर्मत पाचरइ, उलटकर जाण गर्यद मारु वाली मंदिरे, पीने बादल चंद ।।५३७।। बोली वीणा हंसगत पम बाजंती पाल राजादी पर अंगन, छूटे घंटे कंछल । १५४०|| सोई सज्जन भाविया, जीव की जोती थीमा नाव पर हंस, बेलव लागी बाट । १५४१|| यही नहीं, पाश्चात्य गीत-काव्यों की तरह वाक्चातुर्य, उत्तर प्रत्युत्तर शैली व्यंग्य वचन वामी विच्छित्ति के अपूर्व चमत्कार पूर्व उदाहरण प्रस्तुत काव्य में मिल जाते है। अलंकारों कावर्णन काव्य प्रमाद की प्रासादिकता में अभूतपूर्व निर्वाह पाता है। ढोला मारु की भाषा प्राचीन राजस्थानी या पुरानी हिन्दी है। मीर की कई पदों साक्षियों का साम्य ढोला मारु के दोहों से देखा जा सकता है। कमीर- अंबर कुंजा कुरलिया गरजि परे सब ताल जिन गोबिन्द बोटे तिनके कोण वाल || ३|१|| ढोला- राति सारस कुरलिया बुद्धि रहे जिनकी जोड़ी बड़ी तिनका काम इमा कबीर- यह बालो गरि करो में ईवा समि पति राम ना करे नरवि दुकाने मारि।। बाली गाँव की तिमी राय को ना३।१ ।। - ढोला- यह बन जारीपति की बात इस प्रकार प्रकल्पना डोक मीर वर्मन बगाकार, काव्य प्रवाह त्या स्थानीय गाँव की दृष्टि दृष्टि से गौर at: (1) विि स्वर सुन्दर है। काव्य प्रवाद की की दृष्टि से कुछ महत्वपूर्ण मम वा उका
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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