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भरा पलट्टा मी परड, भी भरि भी पल्टेर
बाढी हाथ संदेसहा पण विललंती देहि मरवण की माति मालवणी का विरह वर्णम भी कवि ने बड़ी बमता से किया है। वी काल के सारे दृश्य मालवी की कुमारी के लिए असहव है:.
फोब घटा खग दामनी बूंद लगइ सहयम पावस पिउ विण वल्लहा कहि जीवीज कैन ।।२५५।।
काली कंठति वादळी वरचिव मेहा वार प्री विष लागइ बड़ी बामि कटारी पाउ ।।७। गिग कति बा बावल परह, नदिया नीर प्रवाह सिष कति माहिद बल्लहा मो किम रयण बिडाय ।।१५।। मी मोरा मंडब करइ मन्मथ अगि म माइ
ई एकड़ी किम रई, मेड पधारउ मा II जायसी ने नागमनी के बिरा का साम्य पी इससे किया जा सकता है। वर्षम एक रुपमा देखिए:
का बीग चर्क गई गोरा, इंद वान बरसा पापोरा . बोगई वटा मार गईरी, ग्वार मनन गरी मानवीय बराब प्रसाद
बाबानी सानीमा
बन्धन मायामी, बाया पिरा-पाय पाली विद्यारी बिर वाव ५४ पचापिया बाहरी
*विर कालमान 1ि0 पार
पापी नि सकारी मार यही नही कामगार र
सिनेमाम या वर्षन बस, मारावा.