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उपलब्ध होता है। प्रस्तुत रचना एक सुन्दर प्रेम काव्य है। टोला और भारु संसार प्रसिद्ध प्रेमी से है। अत: उनके जीवन पर लिखे गए ये दोो उनके शास्वत प्रेम की कहानी प्रस्तुत करते है। प्रस्तुत ग्रन्थ प्राचीन राजस्थानी का एक प्रेमास्याम गीत है इसकी नागरी प्रचारिणी मी कारी ने सं० १९९५ में प्रकामित किया था। अत: इसका पुण्यवस्थित पाठ सर्व मुलभ है।
ला भा रा दोहा एक लोकगीत ( Balad है। इसकी परम्परा अनुव तिबद्ध रही है या काव्य अत्यधिक लोक प्रचलित रहा है जो धरती की गोद में ही बढ़ता, बनता, विगढ़ता और लता फूलता रहा। इसका यह मा कि इसमें अनेक परिवर्तन और परिवईच हो गए। नये दूहे और मई घटनाएं समय समय पर अगली गई और पुराने दोहे और पुरानी घटनाएं कमी कमी हप्त भी होती गई। आरम्भ में यह किसी एक लेखक की सम्भवतः डोली गालबा डाठी भादि किसी जाति की रचना रही हो पर इसके वर्तमान रूप में निर्माता तो कोई था कवि न होकर मनस्त जमता ही है। भारम्भ में या कृति वा सन्द में सिपी गई।
प्रस्तुख रचना एक सुन्दर गीति मुक्तक है, जिसमें होता और माह की प्रेम था वर्णित है। प्रेम के पानी दिन जब नावे । बवा गमित के सब मिवों को होड़कर बाते है। उसमें गावि पानि, पुन्य सुन्दर मला इरा, वादि नहीं दिवाईया को बल अपने प्राय की पेली कामना कर की सम्भवतः उसकी निगा मिरवरी नौकामा बाहिर बाय। वालिनी की न बरंगों की
बारोबर बोला। नीलम का बाक र बीड और
रवन डोला की बसपा की परिपौवा दी। वीवो काम गेहा माता पिताओं ने उसका विवाह माल की मामी दिया। पर स्मरण दिलाए जाने पर उसो सकता है। वह परवन के पास रोज रात को जाता था।
मागेको बीब उमरा भूमरा मारक परदारों की से दोनों प्रयी गारेगा। बीकान्धी
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