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घट घट व्यापक अंतरणामी निभुवन स्वामी सब मुखराम
विनदास मन बनाई मम्म जनम की दास।' महाभारत क्या में से कवि का एक मास्ति मलक मुन्धर उधरम कवि की काव्यात्मक मसा का परिचायक है। अनुप्रास की छटा भी द्रष्टव्य है।कवि की अनुभूति एवं अभिव्यक्ति दोनों पूर्णतया सबल है। डूबे हुम गंभीर चिन्तन के परिणाम स्वरूप निम्नावित उद्धरण को देखा जा सकता है:
विन राई पढाये पाडे, विनसे बेहे ज्वारी डाडे विनसे नीच ने उपजारु, विन सूत पुराने डाउ बिमसे मांगों पर जुला, विनी जूक होब बिन साचे बिनी रोगी कुपच जो करई, विनसे घर होते रनथरमी
बिन राजा मंत्र जहीन, बिनस मा क्ला बिन ही विनी मंदिर रावर पायो, बिनो काप पराइ मासा
विनसे विद्या कुधिषि पढ़ाई, बिन सुन्दर पर पर पाई मिनी यति गति कीने व्याड् दिनी मति लोभी मा नाडू लिपीने कुमार, विनी मंदी पर पटार पिन बोन डोर मार्ग, दिली व ने माने
दिल शिरिया परिषरमासी, नि नि ' इस प्रकार व पाणी इस रसमा इसारा बिप्रादेशिक विमागायों की यानि यिनी रोष मा पारी वामध्यही समायोरोष परमावश्क है।
हा बारादोगा.' शादी का एक प्राचीन और पापा काव्य होता मारा मोहा.
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१.रेपर्य असावा और साहित्य ..।
ल-गेका पारराग-कामावरीमालीमागी..
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