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परि उछंग मुम चूमावेय, अरे वच्छ किम धान न पेय दीप करि दीने अधियार बन्द विहणि निति घोर अंधार
बिन गौ जिमि कारडी आहि, रोहितास विणु जीवोकाहि तेहि विणु मोजणु पालट भयो, सोहि विणु जीवतह भारत गयौ वोहि विणु मैं दुध दीड अपार, रोहितास लायो अकवार तोडिवि नयन लै को नीर, तोहि विणु सास ज्यों मुके सरीर
तोहि विणु बात न श्रवण सुमेर तोहि विणु जीर पयानेदेड
"
इस प्रकार यह कृति ब्रजमावा की जन बोली की सुन्दर रता है। तथा इसमें संक्रातिकालीन रूम के पर्व संधि काल में लिखे काव्य की सरस जन भावा का प्रतीक काव्य जामविहार का हरिचंद पुराण है।
: रुक्मणी मंगल:
कवि विष्णु दास की तिमी अजमावामें ऐसी ही एक सुन्दर कति पी मंगल है। रचना सं० १४९२ लिखी गई है। विष्णुदास ने अपने काव्य को कृष्ण के रंग में डूसकर पूरा किया है। विष्णुदास की इस कृति का विवरण मी नागरी प्रचारिणी सभा की बोज रिपो में है। स्वर्गारोहण, महाभारत क्या स्वर्गारोहण पर्व भी इन्हीं की रचना है। निम्नलिडिङ सुम्दर पद कवि के कला
व का
जागरूक उदाहरण है:
१
मोडम महलन करत विलास
कमक मंदिर में कैति करता है और कोर न पाव
बिराने पपू
१- बोब रिपोर्ट
को मार
पानी इरि पति देवकि बाढ
बोबो
तुम बिन और न कोक मेरो चरिव महा अका
fe दिन निरन करत विहारो का पूरन परकास
१९४०००५१/
रिपोर्ट १९५३