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आपली सुरिज बंस राज सपबिल्त, धन हरिचन्द न मेल्डो चित्त
अषी भाव धरि जाडू को, नासै पाप न पीडी रहे।।८।। कवि ने वस्तु छन्द में बड़े सुन्दर पद लिखे है। हरिचंद पुराण में हरिश्चन्द्रज्या और रोहिताश्व की क्या हैरमाकार जाने रोहिताश्व और व्या का वियोग, रोहिताश्व की मृत्यु पर व्या का कम मदन रचनाकार की वापी विछित्ति के सुन्दर उधरण है। रचना की भाषा सरल, सरस और लोकप्रिय है। (१) अबधि न चूकै जाइ पराप, फाटे डिया परीयो थान
रोहिवास मन झरे धणे, भागो लाम छ तोहि नमो परि वाडी नीरालो करइ,तब सब बालक हो आगे सरह कलीयल कोयल करै अति धणे, बीरन मेल्हे भाई त । मारयो थाप पड़यो पुरमाइ, पड़ता भाभल्यो बाप माय
अणु प्राइक परयो पतिवार, जापे कन्द्र मिल्यो जिमि राज पुत्र के वियोग में व्या की व्याकुलता बरम पर पहुंच जाती है और वह कामयाब विलाप करती है। एक चित्र देखिए:
मन नीर पर मार अवय बाल कर गरम ईका बास को एक बर बोसी बिमार बस्योपचार
बाल साकि मि विकास विपारि इस प्रकार हैया का ब या या
विवाहपूर्ण आलंकारिक या वर अभ्यास मी यामाजिलि:
मिले सार, रियो र पुकार डाटा पीर, पुराना गौवे नीर गोपडियो बीमार, नी माग भयो सार
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