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________________ एकि अटाति मालि गडि बडया इकि मारि सादिसि दडवडयो इकि सावंडा डण्डोक. मी किमया रुपा लोक ।।३९।। इस प्रकार भीम द्वारा विरवित इस लोक स्यात्मक प्रेमास्थान की सरसता और सम्पन्नता उक्त उद्धरणों द्वारा स्पष्ट हो जाती है। अप्रैन कृतियों में इस प्रकार की लोक भाभ्याम भूलक रचनाओं का महत्व अनुभव किया जा सकता है। पूरी रचना प्राचीन राजस्थानी वा जूनी गुजराती की सुन्दर कृति है। -हरिचंद पुराण - ( ४५) हरिद पुराम की प्रति अभय जैन प्रधालय में सुरक्षित है। प्रस्तुत रखना ब्रज भामा की है। नागरी प्रचारिणी सभा की बोर रिपोर्ट में इस कृति की सूचना प्रकाशित हुई थी बन्ध की प्रति बिद्वारा प्रचारिणी सभा गपुर में थी, पर वा पंडार नष्ट प्रष्ट हो गया और इसकी प्रतियां श्री नाहढाणी में इधर उधर मिकती हुई खरीदी। माहटा जी ने संग्रह की प्रति का प्राकार प्रकार तथा उसकी ब-संख्या पूर्णतः वही है जो विद्या प्रचारिणी सभा की उक्त प्रति की मागरी प्रचारिणी सपी की बोज रिपोर्ट में बताई गई, अब नाटा जी कीप्रति भी संपवाया वही है। कि रविता नाममिकार था. fuTE मे पीस शिकविसम्म प्रति निराधारी कामले निराकरण कर बि . सी विवालिब सारा का नामार बाराबार या दोवा मग.. १. अपयशाला नीकानेर , प्र तिशत -बोव रिसोर्ट न .nn 1. देविका और उसका बाहित्य-पा-श्विप्रा frut प्रकान्बिी बार मावासबाराणसी 1
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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