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________________ १६५ कवि ने उसके नवशिव सन्ध में उलकर पारंपरिक उपमाओं के साथ आलंकारिक बैली में मौलिकता उपस्थित की है। वर्णन की सजीवता देखिए: (पदधड़ी) गय गमणि रमनि तुरगय गर्मति, *ड अनि लगभग न नमति पय पंक्य लकति चिरंडित, पति पक्ति चित्तथरि चडवर्ड दि जब जंच डुअल वरवंम क्षेत्र, पिथल कि उरथल करिण कुंभ कर पल्लव नव वाया अशोक, यौनबन्न सारीर रोक ११४८ || मुख कमल अमल aftsर सरित्य, निलवटि तिलय ताडीकमन्छ कुंडल कि किन पायार मार, कोटीस निकर परिगर अपार ।। ४९ ।। तिलकुल्ल नाम संजुत्त मत्त, हि दाडिम देत अहरा रगत्त अंजन सह वजन सरिस मित्त, सीमंत कुंठ किरि भयरक्ति । हुड भगड कामकोदंड पंड, कटि दिवं प्रलंबित मी हरिद्वारसारणी समान, सममंडल अवर न उपमान ॥१॥ इस प्रकार कट्वा में कवि ने सामलिंगा के शरीर का सुन्दर चित्र डीवा 1 इसके अतिरित और भी कई काव्यात्मक वर्णन कवि ने बड़े ही संभार के साथ संवा है। वर्णन काव्यपूर्ण सरकार है, वर्णन की बात्कारिता देविष: गाँव कटर वह माड, पान मां का काव्या र, नइमति माथि कोई नगर | 12411 कीवी गपूर, वास्वी के बाब्या पूर | |३६|| बीडी पारिदिन परि पींडी क • लोया कोहिना बुनार, माठा ढोक न बाबइ बार 112014 कि कोल, किरि मानि पोवाडाच्या पारिर किरिवाटी पनी । ॥३८॥ - पिए १०-११
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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