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काव्य की क्था का मूल आधार ऐतिहासिक है। भूगल, मरवर, मालव आदि सर्व प्रसिद्ध स्थान है। ला स्वाहा राजपूत था। मारवाणी का विवाह टोला के साथ हुआ था इसका उल्लेख ऐतिहासिक अन्धो पर्व लोक कथाओं में यत्र तत्र मिल जाता है। बाहों की ख्यातों में ये बर्षन विस्तार से मिलते है। प्रस्तुत काव्य की क्या में अनेक प्रवेष मिलते हैं। किसी में पूरा माम्य गाहा, दूहा और धारा छन्दों में लिया गया है।प्रस्तुत कृति कुल ७r छन्दों में पूरी हुई है पर विद्वान सम्पादकों ने इसके परिशिष्ट में विभिन्न प्रतियों में प्राप्त लगभग सभी पाठ वे विए है।
जही तक रचना की प्रबन्ध कल्पना और वर्णन पीर्य का प्रश्न है डोला भाऊ रा दोहा एक उत्कृष्ट रमा है। कवि को मार्मिक स्थलों की पहिचान न थी रितु वर्णम, करहावर्णन एवं प्रेमवर्षन, को ही परस बन पड़ेला मा वियोग श्रृंगार की तुलना बावडी की नागमती विरा वर्मन की मावि सरस है। पपीस ... *पी कहा, पी हा की पुकार, बिजलियों काप्रेमी पन से भिल्ल, मालवणी का माबों की इस गना, आदि सबका स्वामा विक वर्णन है। पी कही के काल उत्पन्न बेदना का वर्णन देखिए:
बावडिया मा विरहिणी डावा एक बहाव
यही परखडपण या मीमा वाम पहनावा की नागमती की यह पशि मा स्थान हो पाती।
पिय वियोग बस बार बीमाणि मि यो वि वितियों का गानो भागिन गानों पानी को जारी हो.
पीलिया बळावानि मामा मागवि . कबरे की धन्यमा भूगोmil बीवतियां पाया कि मामा भ्यारि
समिती बन्ना, बागी मार पसाdिion बार पानी रोगों और पारो कान सुनकर इन मिसिनोप मातील स्वर प्रार्थना बीयका प्रबार, नर