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________________ १४८ इस प्रकार उक्त उद्धरणों कीभाषा में प्राचीन राजस्थानी अथवा जूनी गुजराती के स्वस दिवाई की है। पूरी रचना एक सुन्दर लोक प्रबन्ध है। अत: लोक परम्परा और क्या की दृष्टि से प्रस्तुत खना विदयाविलास पवाड़ो से पूर्ण साम्ब रखती है। ऐतिहासिक दृष्टि से पक महत्वपूर्ण जैनवर काव्य श्रीधर व्या व रणमल छन्द है। भूरला मे विसं. १४५५ में जब हमारे च पर माक्रमण किया उसी समय कवि मे इसकाव्य की रचना की थी। श्रीधर ईडर के अधिपति राब रणमल्ल के रायश्रित कवि। रमाकार श्रीधर मे काम्य के प्रारम्भ मेंस्कृत के मायाव दिए है, इससे स्पष्ट होता है कि वा संस्कृत का भी सक्षम कवि था। रममा सन्द पूरा काम्य वीर रस प्रधान है। रचना ऐतिहासिक तथा प्राचीन परिचमी राजस्थानी में रवी गई है। विशुद्ध वीर रस कृति में आयोपान्त निम्पन्न है। अन्य किसी भी रसको कपि मे निष्पन्न नहीं होने दिया, यह उसकी सबसे बड़ी विशेषता है। वीर रस का वर्णन क र भी विकास की सबसे बड़ी विशेषता यह है उसने कहीं पीरिमा को स्थानी दिया। बाराका पारगम्य स्वमायोति का अनूगा उदाहरण है। रमा विनय, स्वासरावोलिया, बों की अलमारला उत्तर म स्वरूप का भाव या प्रा स्पष्ट करती है। स्थान पर वीर रस मी स्वालियन हन्टमा मग अपर मुन्दर सटिव मालवारि र रंग गिरी गिरी, बोलनिमारकर fara पायर नर रेन्स मावि मर र विप गाविभाग, Re Manm:
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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