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भूपन्डलि भड काधम्ज भडोहडिजवालिपिडस भिडन्त
रमाल रणकल रवि रोगाम पुषसत्तापि वरंत उल्लालवि पालबिक मला लवधि लोभिलाव घामट पारि घाड़ पर धसममि घसमरि इगपडन्त कमधन उदयगिरि पन्डम सविता मलमल मलल पडत रिस पनि धूम धरई, पगडायणि, परवरि डरलत
भब्दों की बनुरणनात्मकता, ध्वन्यात्मकता एवं नावात्मकता और अप्रास अलंकार की सुन्दरता देखते ही बनती है। जैन कृतियों में सुध का ऐसा रोमाचक वर्षम शालिमा सूरि विरचित परतेश्वर बाहुबली रास देखने को मिलता है पल्तु उसमें भी काव्य का प्रवाह इतना सबल और सौक्यपूर्व नहीं मिलता जितमा रमपद में उपलबध होता हैतियोक्ति कहीं दिखाई नहीं पड़ती। यक्ष भूमि का इसमा स्वाभाविक और टापूर्ण वर्णन आविकालीन जैन अप्रैन काव्यों में कहीं भी मिलमा असम्भव है।
माद बन के लिए पारसी के अन्तर्गतवति निम्नासि उधरण देशिय:बम बनाई उमटमकार, डकर ढोल ढोती चंगिया परली व बरबाद हरि बरस रपि सपरेटि गया यी गो कार धरमरण
परा परवानगन बाली विमा उत्प्रेक्षागों का मदर वर्णन की लीराम पानी पिया.
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