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१४५ (अर्थ:- इस प्रगर नाव होने को किसी , शपि तू हमारे देश को नहीं देखती है। ऐ रान, जो (दू ऐसी) आपूर्व शेषित हो रही है, यही वह व्यक्ति नहीं है जो (ख) बसा मोहित न हो जायनरी) बारों में जो अल्प काल दिया मा है, जो
वह उसका मवर्ष नहीं (at) कानों में बांकी रडिम (करपत्रिका) इस प्रकार ही है कि अन्यों (अन्य अंगो) को गेमा के लिए क्या कर्मव्य है।)
उस उधरव से भाषा की धरलबा,अपच की कार बाला प्रवृत्ति तथा वर्षन की प्रासादिकता वा नाति की सम्पन्मता स्पष्ट है।इसी तराई उधरव दिए जा सकते है। इस तरह शिलालेस १०वी तादी की भाविकालीब रचनाओं की सबसे प्राचीन सरस एवंकाव्यात्मक प्रवाह से परिपूर्ण है। गद्य तथा पद्य - दोनों मों में इस शिला लेख का महत्वपूर्ण योग है।
प्रस्तुत शिलालेख का कवि अवैन है। इसका पूरा पाठ प्रभावित हो जाने पर सम्भवतः विश्वान लोग इसके लेखक के सम्बन्ध में अन्य मत प्रसव कर । यो बैन परम्पराग इसमें पूर्व निर्वाह भी नहीं मिलता था जैन की के वर्षन शिल्प के विशिष्ट तत्वों का भी उल्लेख नहीं किया जाता । अनुमान से यह कहा जा सकता कि जैन कवि ऐसे समान में मणि वर्णन करते नहीं थे गए क्योकि ग्मकी वर्णन प्रति माया लिमोडी पर किन पी राम, चाय
समानों न कवियों मामालियों से पार पीमा योग. मा प्रकाशियान रखा
है। वाया पानी परिवार से बीमार होना "मग की शया, परिवानी मानौं जिगर की साडी पानी पीना बाकि विं , य एवं मामूली कमर मागविना कास्य भर कर सहज निवार दिया
them. विरशिस सविंदा मामा माम मारठी का मारामारी मा की।