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(अ) रास (ब) फागु (स) चतुष्पदी (द) चर्चरी (क) प्रबन्ध (ब) चरित (ग) विवाहलो (घ) सन्धि (क) पवाड़ी (च) कक्क मातृका (२) गौषकाव्य परम्पराएं - गौणकाव्य परम्परा -प्रबन्धात्मकता, घटना कौतूहल तथा वस्तुशिल्पइनमें प्रधान काव्यरूप है- दोहा छंद, छप्पय, रेहुआ, गाथा: विषयप्रधान काव्य स्प- महात्म्य, घोर, पट्टाही बारहमासा, तलहरा सम्बोध, संवाद आदि; (३) स्तवन काव्य परंपराएँः स्तवन काव्य रूपों में प्रमुख रूप है-उत्साह, गीत, स्तोत्र, स्तवन, बोलिका, स्तुति वीनंती, कलश, नमस्कार, प्रशस्ति, सफाय आदि (५) गद्य परंपराएं जैनगइय परम्परा उसके विविध स्प विभाजन कालक्रम से कृतियों का वर्गीकरण तथा विश्लेषण- निष्कर्ष: (१) प्रमुख काव्य परम्पराएं- (अ) राम काव्यासों का अध्ययन- राख परम्परा की प्राचीनता- भरत के नाट्य शास्त्र में राब+ मास के नाटक- सरस्वती कंसमरण- पुराणों में राम बाणभट्ट काम सूत्र अभिनवगुप्त श्रीमद्भागव वागभट्ट के अनुसार रास का शिल्प-निकर्म - अश्लील राक्षक पदानि और उस पर विचार- संस्कृत काल के पश्चातू रास- राजस्थान में राल का रूप संस्कृत कालों के रास- रिपुदारण राम की प्राचीनता - अपभ्रंश के राम कालान्तर में राम क्रीड़ा- राम के विविध तत्व- १०वी १२वीं ताब्दी तक राम की स्थिति-हेन्द्र की रास सम्बन्धी मान्यताएं- मम उद्धत और निवास मोर- रासक का अन्तर :- ११वीं शताब्दी तक नृत्य गान और अभिनय की राम की विषय वस्तु थी १वीं शताब्दी में रास विषयक वस्तु में परिवर्तनचरी गीतियों का समावेश- कथा तत्वका समावेश- चरित संकीर्तन का समा रासा बंध वीं से शादी करा साहित्य के किल् उसकी प्रमुख प्रवृत्तियों और विशेषताओं एवं उसके विकास की कड़ियों का विभिन्न दृष्टियों से अध्ययन-संगीत व नृत्यकला के रूप में-छन्दों की दृष्टि से - विषय की दृष्टि से साहित्यिक क्यों की दृष्टि से तथा वर्ग की दृष्टि
- इन विभिन्न दृष्टियों से राम का विषम
निष्क