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(२) जैनेतर(लौकिक) गइरा रचना:पृष्ठ भूमिः हिन्दी साहित्य के गट्य की परंपरा, संस्कृत प्राकृत • पाली क्या अपज की हिन्दी कृतिगों में हिन्दी गद्य के उदभव के अंकुर, बुवलयमाला. पुरानी कोसली का ग्रन्थ उक्ति व्यक्ति प्रकरण और उसके उद्घरपः ११वीं ताब्दी के रावल समर सिंह और महाराज पृथ्वी सिंहके दो प्रसिद्ध दानपत्र और उनका गद्म; गोरखनाथ के गया- दृष्योग के प्रन्थ में गद्यअन्य कृतियां और उनका हिन्दी गद्य की परंपरा के विकास में गोगअनेतर गय कृतिया ...ीं उताब्दी से १५वीं शताब्दी तक उपलब्ध, अजैन कृतियों का गद्य परंपरा को पुष्ट करने में महत्वपूर्ण योगदानपालवी पावा का शिलालेख और उसका विश्लेषण: मैथिली का वर्ष रत्नाकर और उसके गद्ध अवतरम पमनानकृत राजस्थानी महाकाव्य कान्हड़ दे प्रबन्ध और उसका गट्य : एक विवेचन : अचल दासीची री बच निकाअचल दाप नीचीरीबाग- इन कृतियों का विस्तव विश्लेषण- निष्कर्ष । (पृ.१४० - २१७ ॥
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दिवतीय भाग
बध्याय
आदिकासमन्दिी जैन साहित्य(१) म काव्य-परम्पराएं। "न्यन्यायमान
माझिालीनहिन्दी केन साहित्य के स्वम का वैविध्य. उसके स्वरूप के लिान के प्राचार- प्रमुख परंपरा-1) प्रमुख काव्य परंपरा) गौषकाव्य परंपरा (३) बन गय परंपराएं (४) मद्य काव्य परम्परा (१) प्रमुख गाय परम्पराए:- प्राप्त काव्यों में एका काव्यों की प्रक्षिा परित काव्यों का विकास काव्य, मारिकाप न कृतियों का वीर द प्रधान या नियमान काबरमके अध्ययन के आधार;