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१३५ लक्षमदेव कृत निविवाह चरिउ, बाहुबली बरिउ तथा यशः कीर्ति का चदम्प चरि १ तथा रयधू का कोड चरित, सम्मति नाथ चरित तथा ७वीं शतानी का भगवतीवास का गाe der वरित तथा और भी अनेक अप्रकाशित रचनाएं जो लेखक को उत्तर अपर के साहित्य की शोध करते समय उपलब्ध हुई है, अपभ्रंत्र की प्रौढ़ काव्यात्मकता की प्रतीक है। वस्तुतः प्रबन्ध बला और उसके तत्वों के आधार पर इन अपड काव्यों का भाव और कलापक उपेक्षा की दृष्टि से नहीं देता जासकता। क्योंकि परवर्ती पुरानी हिन्दी के सारे काव्यों का प्रसाद अपभ्रंश की इन वर्जन परम्परा, काव्यात्मकता तथा वैविध्य पर ही निर्भर है।
अस्तु अपभ्रंक प्रबन्धों में जैन कवियों ने क्या नायक किसी तीर्थकर को अथवा महापुरुष को ही चुना है। इन प्रबन्ध काव्यों में से अनेक काव्यों की रखना के मूल में साहित्यिक संकल्प है।
कला पक्ष
अप के प्रबन्ध काव्यों, तथा उपदेश प्रधान अन्य सभी कृतियों का क्लापथ अलंकार शब्द चयन भाषा बादि सभी यों में पुष्ट है। ये कवि कला के बच्चे पारवी है। जैन कवियों को काव्य ग्रन्थों सेइतना अधिकप्रेम भर कि अनेक अजैन कवियों के ग्रन्थों को भी इन कवियों ने अपने भंडार में सुरक्षित रखा है। गौध रचनाएं, जल रहमान का संदेश राय, तथा बीजादि रास ग्रन्थ इस बात के
उपकरण
है।
मिला है।
काव्य षडियों में मोटा बोबाई पति को साथ बोधक, डिक, डोसा, इडलिबड़िया, राम, कुन्डली, वादा, पम्पेटिका, मातमादि
और वन की काव्य पद्मवियों ने हिन्दी प्रति किया है।
इसी प्रकार
स्यानाविक बर्तकारों, खुद चन की प्राविका नामका या वारसा का रमन है। इस प्रकार एवं मोमीन्ड मयों ने मौन मीर मोड़ा,
इन
बस्तु, पत्ता, रहा, राजा
अनेक
है। यही नहीं
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