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afrषद, दोहाको तथा ब्राहमणों तक ने अपअंड में काव्य रचना की है। अतः इनका कला पक्ष भाव से निर्बल नहीं है। चंद की चारण शैली में लिखे अपभ्रंश के अंशों से जपर्यंत पापा की क्षमता का परिचय मिलता है।
काव्य स्मः
आदिकालीन हिन्दी जैन साहित्य में जिस प्रकार काय पति और काव्य रूपों में वैविध्य मिलता है ठीक उसी प्रकार अप में भी काव्य रूपों का वैविध्य मिल जाता है। वरित, राम, आख्यान, बर्बरी, कहा, सन्धि काव्य लोक कथा काव्य आदि काव्य रूप मिलते है। अपभ्रंड के इन का रूपों का मूल इन पुरानी हिन्दी के काव्य रूपों में दृष्टिगोचर होता है। यद्यपि इसमें से अनेक काव्य रूप अपभ्रंश में नहीं मिलते परन्तु उनमें से प्रकारान्तर से उनका सम्बन्ध स्पष्ट हो जाता है। काव्य पद्धतियों में भी अप की इन वर्धन पद्धतियों का वर्णन पुरानी हिन्दी की रचनाओं के मूल में है। रुक काव्य, संधिकाव्य तथा वरित काव्यों में से काव्य कम स्पष्ट दृष्ट है। पुस्तक काव्यों में गीति, स्त्रोत स्वयम, दोहा, सल्काय आदि अनेक काव्य रूप मिल जाते है। इस तरह वैविध्य मूलक काव्य रूप अपभ्रंश की इम कृतियों में देखने को मिलते है। काव्य क्योंका यह वैशिष्ट्य अपच की अपनी विशेषता है। पुरानी हिन्दी में जो सैकड़ो प्रकार के काव्य स मिलते है उनमें वैविध्य प्रस्तुत करने की प्रेमरा मद के इन्हीं काव्यों ने दी है।
लौकिक प्रबन्ध और उपदेव प्रधान रचनाएं।
में कुछ प्रबन्ध भी मिल जाते है तु से या में बहुत कम है। इन वन प्रबन्धों में मार का प्रति काव्य शिराकलिया जाता है।इस काव्य में कवि ने विनीनाविका के उदय के समस्त दर्द को है जो विरहमयी
विरह के कम में नामी दी है। पूरा काव्य एक सुन्दर लौकिक
rfer की धड़ों का
है। विज्ञापति की कीर्तिलता को भी इस प्रकार की रचनाओं में स्थानांचा वा या है। इमरजनामों को रख प्रधान ठोकि पर्व क्या जा रहा है। ऐसे काव्यों में कवि की
ऐद्रिया कि
स्थानीय रंगों का सुन्दर विजय मिळाला.
उपदेश प्रधान पवनाथों में बालिक
कवि मे