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you faथिल होकर पुनः शक्ति लाभ करता है ठीक इसी प्रकार अपभ्रंश के इम प्रबन्धों की स्थिति थी। धर्म प्रचार और महापुरुषों के चरितवर्णम में इन्होंने वैविध्य ढो प्रस्तुत किया, परन्तु संस्कृत की एकरूपता तथा प्रभावान्विति की सम्यक सुरक्षा कर सकने में ये काव्य सवम नहीं थे। हर इन प्रबन्धों की सबसे बड़ी विशेषता है, इनका वैविध्य एवं इनका लौकिक परम्पराओं से समझौता से काव्य जन समाज के लिये हैं। इनमें विभिन्न रूपों में वर्णित सामाजिक स्वरुप तथा मानव की लोकमूलक क्रियामों और विभिन्न दृश्यों के सुन्दर चित्र प्राप्त होते हैं। *
घटना में वैविध्य, कौतूहल क्या कथात्मकता में विविध चमत्कार एवं आरोह अवरोह लगभग सभी इष्टव्य है। इन प्रबन्ध ग्रंथों को महाकाव्य के तत्वों की सटी पर देखने पर इनमें नायक वर्णन, सत्य तथा वैविध्य, रस और अन्य सभी बातों का सम्यक निर्वाह मिलता है परन्तु थोड़े थोड़े परिवर्तन के साथ। यद्यपि मूलतः इनको वर्षमक्रम, काव्य पद्धतियों घटना- विन्यास तथा आधार भूत तत्वों में पर्याप्त समानया है। पर साहित्य की इस संक्राति कालीन स्थिति ने महाकाव्य को बहा दिया। उसमें जीवन्त संस्कृत की तुलना में कम हो गया। संस्कृत की कासोन्मुख प्रकृति का प्रभाव इन पर पड़े बिना नहीं रह सका। और यही कारण है कि वही क्या रूढ़ियाँ, वही काव्य कड़िया, वही वर्णन क्रम, वही पारम्परिक घटनाक्रम और वही क्या का तारतम्य बना रहा। फिर भी धार्मिकता, प्रचार पर्व जनसमाज से सम्पर्क होने के प्रयों में लोक जीवन का संपर्क सौन्दर्य, माध्यात्मिकता, प्रमा परवा और ईला मा बादि गुण विद्यमान पर पोच कसे वाले विमानों में मयि
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काव्यों की
प्रथमकता और साहित्य सौन्दर्य को
काव्यों की
दुर्बल कहकर
संदेह की इष्टि से देवा है
है बात ऐसी नहीं है। इस साहित्य का
मन्थन भी नहीं हो सका है। की परम्पराएं तो उनमें अवश्य सुरक्षित
है।
१- देवि हिन्दी के विकास में मन का बोम ० १-० इवारा ठा० नामवर सिंह
* देवि हिन्दी साहित्यका माविका
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हिन्दी हिब की कि डा० ज्वारीप्रसाद द्विवेदी द्वारा दिए दूर afa at का विर ३१६२