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१३२ संस्कृत साहित्य भी प्रत दिखाई पड़ता है। क्या वर्शन क्या काव्य सर्वत्र पुराने क्यों की पुनरावृतियां दिखाई पड़ती है। मौलिक उझावना की अपेक्षा टीका और व्याख्यानों में रख लिया जा रहा था,प्रमेय दूर था, प्रमाण बरी अधिक थी, दार्शनिक एकता मय म्याय के बाद विवादों में पुरित हो रही थी। समस्त पिन्समवर्क जाल में उसका संस्कृत काव्य हदय के सडन उच्छवास को छोड़कर पाडित्य प्रदर्शन तथा माध्य बालंकारिक बैन्टायों में लीन था | अन्यों का बाहुल्य था। रस के मान कर व शक्तियों के सामन्त थे। प्रकृति मित्र, नाम परिगणन, और भौधक्य विधान से वोफिल था। मानव अनुभूतियों की अभूमि संकुरित होकर गारिक लीलाओं से पंक्लि हो सी थी। राजदरबार के उजड़े वैश्व की भासी पुनरावृत्ति से वस्तु वर्णन मिल हो रहा था। चरित काव्यों में परिवों का व्यक्तित्व र थाए टाइपों के सा में ही हो पा था, मुक्कक काव्य कृत्रिम और प्रय थे। प्रबन्ध काम भाकार में बिल होते हुए भी श्रीन हीन है।'
अषय में इन मी बढ़ियों का प्रयोग कर स्कृत साहित्य की उतभी प्रबियों को रोका काविलीन सभी सामग्री में ऐतिहासिकता को अवश्य बनाए रखा इनवों की ऐतिहासिकता निनाद हो पाती है। कृषिय गालियबा गागरण परिवन था रेसिामिछाति प्रस्तुत करती है। स्वयं अभ्यास, और मान प्रणि कपिल उपस्थित करने वाले स
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गनों विज्ञान, निार और मान प्रमच काव्यों में राम और बीनको काव्या वाधार बना कर प्रबन्ध वाव दिशामा और पारीरवियों के आने से, कीक इसी मगर अपने प्राममान मिा कन्धों में बीवियानों को भी जोगितामसारा सम्पर्क करने
की बारी सारेगामीजी mater PROR.MARA
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