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________________ १२३ इस अध्याय में करने का मूल उद्देश्य लेखक का केवल यही रहा है कि हिन्दी जैन कृतियों के मूल में धर्मज्ञामधारा या प्रेरणा के रूप में विमान है। अतः इन रचनाओं का अध्ययन करने से पूर्व उनमें प्रयुक्त उक्त दार्शनिक विधानों का परिचय भी पीत अपेक्षित है। अन्यथा कई उनकर रह जायेंगे मागे कुछ कुरु में प्रयुक्त कुछ मोटे मोटे जैन दार्शनिक विज्ञान हों पर प्रकाश डाला गया है। यों तो इन रचनाओं में सामान्यत: जैन धर्म के तत्व सर्वत्र मिल जाते है करोंकि ये कृतियां जैन मुनियों, प्रधानान बावक, जैनब था वीतरागी गृहस्थ (कुछ छोड़कर) इद्वारा लिली गई है। फिर भी यह कुछ प्रमुख कृतियों के जैन सिद्धान्तों का परिचय दिया जा रहा है। प्रमुख हिन्दी जैन कृतियों द्वारा प्रणीत धार्मिक एवं दार्शनिक सिद्धान्तः कृतियों में धार्मिक दार्शनिक सिद्धान्तों के प्रथम की परम्परा के धर्म की प्राचीनता की भांति ही चिर प्राचीन है। प्राकृत से लेकर पुरानी हिन्दी क की मी रखना मैं किसी न किसी प्रकार जैन धर्म तथा दर्शन के स्कूलों का प्रवन मिल जाता है। महावीर मीर में प्राकृत पाया को धर्म प्रचार का ग्राम बनाया। संस्कृत्य भी वैनियों द्वारा प्रभूत मात्रा में रह गया है। ० साहित्य की महत्ता पर धूम प्रकाश डाला है। इसी प्रकार पर कार संस्कृत के पश्चात जैन की लोक 1. Sow what would nokrit pooter be without the large Sanskrit literature of the Jaians. the more I learn to know it the more my admiration rises - Jaina hasana Vol. 1- No. 21 Bartel.
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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