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स्तन रखने में यम है तथा अपने अनेकान्त सिद्धान्त इद्वारा अनेक वाद के विवादों के साथ समफीता प्रस्तुत किया है। वह वाय्व, बागाउंबर पर डी वह नहीं देता। अपरिग्रह, अहिंसा और अनेकान्त पर भी असाधारण वह देता है। ही उसके दर्शन का प्रमुख सत्य है। वस्तुतः जैन दर्शन आत्मा की सर में विश्वास करता है। वह मुष्य को स्वावलम्बी बनाना चाहता है। उसके अनुसार केवल मारना ही पवित्रता और पूर्व की ओर ही है। आत्मा को पूर्णता की बोर बढ़ाने में ब्रह्माचारों से दूर होकर लुक्य को कर गमन करना होगा। बाधना में उपने के बाद ही मनुष्य की हो सकती है। इन्हीं भावनाओं को बाबारंग म ११६-१७) में सम्यक प्रकार से पकाया है। वह को एक में विश्वास रखने का उपदेश देता है। कृाम में तो यहां तक शिक्षा है कि हे मनुष्य अपने शरीर लड़ी अन्य किसी ने कोई काम नहीं। मनुष्य ही उसका बड़े अच्छा मिया से कहने में
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t:hocording to the Jains their religion as propounded by their omniscient TIRTHANKAR 1 nothing but truth and hence they are inclined to believe that there has never been an age when Jainism dil not exist at least in some part of the world and that there will never come an age, when it will be ompletely wiped off from the surface of our globe. See the Jain religion and 24terature, vol. 1- page 78by Dr. HR. Kapadia.
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अवतारवाद
E-NETENTE, & TEATS, 17 1- PATITE,, comf ११-साकार बिकार बाद
बा १- नवा इन बा साथ उदार दृष्टि के निवाहर है।
- निमदिवाद -क्रियावाद, १०-दिगम्बर श्वेताम्बरवाद १३-मा विवाद, १४-वहारBUT WITH THAT & BUT ना उनकीता किया