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________________ free: १२० कैवल्य उक्त सिधान्तों के आधार पर धर्माचरण करने से ही प्राप्त हो सकता है और यहीं वन्य जैन पुनियों को मुक्ति की ओर असर करता है। विदेह की तिथ भी जैन मुनियों की आध्यात्मिक साधना कर रहस्य है। कैवल्य पद प्राप्त होने पर तपस्वी साधक मुक्ति की ओर अग्रसर हो जाता है।सत्य धार्मिक after सह अस्तित्व, अपरिग्रह और शसके लायक होते हैं। स्यादवाद उसे अतिवादी बनने से रोकता है और तपस्या की विवि से ज्ञान के स्वरूप और areefense जैसे कठिन स्वरों से पार कराने वाले सहायक सत्य है। वहीं जैन धर्म दर्शन का द्वार है। इस प्रकार इन सभी कृति में साहित्य के माध्यम से प्रकट दर्शन सम्प्रदाता और उदारवाचक का प्रतीक है। यदि निरपेक्ष भाव से देखा जाय यो प्रकृतिवाद, निकवाद, विज्ञानवाद, इन्यवाद अद्वैतवाद, ईश्वर-कर्तृत्व-वाद आदि सभी वादों की प्रमाणिकता से जैन दर्शन फीता करके वला है। सत्यTE दोनों को जैन धर्म का वर्धन स्वीकार करता ३ जैन धर्म के समानान्तर चलने वाला बौद्ध धर्म अनेकों में जैन धर्म के बौध धर्म का जै धर्मों के मूल छत्वों से पद्धतियों को छोड़कर धर्म से साम्य देवा वा सकता है। बौद्ध धर्म के की नहीं मी उसका किया है। गया उसमें मामा क्यान और विनी मानवता के प्रदेश मरा है। यही कारण है कि वह संसार में स्थानों पर बाद भी ब दर्शन से मेल बड़ा है। कुछ 1. In the Jala syaton the principal is always kept in the fore front and hence religious toleration fellowship and e-existence is the essence of Jain Philosophy - see Jainsm 2000 7. The forword written by Dr. Hiralal Jain." 2. Jeiniem mentions that truth and natruth have been existing and will continue to exist side by side" See Jalaion page
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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