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की सृष्टि होती है। हीर्थकरों और महापुरुषों के चरित्र
होता है। सम्यक दर्शन और सम्यकृत्व की
का पूर्ण समावेश सभी प्राप्ति होती है। शस्त्रों में सम्यक्त्व की परिभाeा में इन बातों का समावेश हो जाता है। इसी आस्थान किया गया है। जैन
प्रकार ज्ञान और गुन स्थानों का भी
दर्शन में १४ गुण प्रेमियों मानी गई है। जैन दर्शन में प्रयुक्त सभी
पारिभाषिक
और प्रतिक है।
आध्यात्म भावनT:
उक्त विवेचन के आधार पर के कवियों की बाध्यात्म भावना का परिचय मिल जाता है। वार को जैन कवि अनिय समते है। आध्यात्म के प्रति जैन दर्शन का मान विविध रूपों दिया जा सकता है। इनमान व तत्वों में लोक मानना, धोषि दुर्लवत्व माय, धर्म व्याख्या-भावना, एकत्व भावना संसार भावना त्या neen पावनाओं को लिया जा सकता है। इनका जैन दर्शन में वितत परिचय मिल जाता है।
पट वर्ग:
जैनियों ने कमों को प्रधानता दी है वे है- देवपूजा, रूप, गुरु की उपासना स्वाध्याय, दान और संयम में तप ध्यान हुन्छ ध्यान, ध्यान, धर्म ध्यान दिव्यानों के जा सकते है। वहां तक वर्ष वैशिष्ट्य का प्रश्न है के धारणार्थ पाय और दो । प्रकार का वैशिष्ट्
हो
१- देवरी वा महि
वाच विडियो डाउलोक-१
२१- या --ति सम्यक दृष्टि - XP, - बाग - अपूर्वकरण ९ अनिवृत्तिकरण ११-१२-१३
५
१०० सम्पराय
२४ न्याय विवा, युवाका
१४
है। देश जैन दर्शन ० १०६ मुनि श्री विहाल, प्रकाशक: क्वदाचार्य के समा
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