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वर्णन किया है। अपनी पत्नी की पादित गति के अतिरिक्त प्रतीक की कामनेष्टा देय है। - अपरिह अपनी आवश्यकताओं को जितना कम किया जाय इतना ही ठीक है। अनावश्यक वस्तु ग्रह से बचने को अपरिग्रह कहा जाता है। - दिशाओं का प्रत: नियों ने पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण दिशान, आमेय, रित्य, वायव्यये गार विदिशाएं, सिर अर की उर्व दिशा और पैरों के नीचे की अयोधि इस हराद विराई पानी है। इनकी प्रवृत्ति के अनुकूल बने कार्य में अवरोध नहीं होता निविन समाप्त हो आते है। भोगों - पोगों का मिलना अनिवार्य है। जैन म के अनुसार एकर जमा उपसोग किया जाता है, वे पदार्थ भोग कहलाते जैसे अन्न, ल , मादि। था जो पदार्थबार बार उपयोग
मे उपयोग करता है। परवाभाय का निभी इसी बस में शामिल है। - निरर्थक पापावण: इसका नाम अनर्थ ही है। अनावश्यक पाप मनुष्य करता है। उसे पाप का उपदेश नहीं करना चाहिए। हिंसा पाप का धूल, इससे बह दूर है। पूरी वस्तुओं को उसे भूलर भी ध्यान नहीं बना पाए, क्योकि इससे अनेक प्रकार प्रमाद पाकिता पड़ी एक बान परमार ध्यान करने को सामाजि को है। : मासस्य में स नहीं कर धर्म गावो का चील या परपात्या प्रमिधान करना चाहिए। -पोषणा
का परिणाम
होयको बाका परावण मेरो-
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राजीनामा मा भी मा गावातीसदी मासिकार का मानों में प्रारम्प पाच
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