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स्वर्ग के देवता, तथा नरक सब आ जाते है। बंधन को कम के आवर्त में माधदेवा है। अत: परमाणु से लेकर स्थूल, अतिस्थूल और महा स्थूल सब पदार्थ पुद्गल है
पुदगल का मूल परमाणु है। ये परमाणु है। परमाणु की प्रथम स्थिति प्रदेश कहलाती है। मुद्गल के संख्या अर्थमा और अनन्त प्रदे होते हैं : प्रदेशात्मक समूह * कारण ये अस्तिकाय कहलाते है। पाप और पुश्म इन्हीं अस्तिकायों से सम्बन्धित है। जिन कारणों से आत्मा के साथ पाप सम्बन्धी विविध कर्मों का सम्बन्ध होता है, ये कारण मास कहलाते है। वर्ग बंधन में मनोव्यापारों का स्थान प्रमुख है स शरीर को विभिन्न कयों के बंधन से रोकने वाले आत्मा के निर्मल मानों को संवर कहा गया है। कर्म का मात्मा के साथ दूध और पानी की भीति होने का नाम मंथन है। गम को इन्हीं बंधनों से बयाना मोड़ की प्राप्ति कला है। (३) माठ कर्म
sa को आवागमन के बंधन में बचने वाले ये बाठ है। जिनमें ज्ञान वरण, वनावरण, वेदनीय, मोहनीय, गाइ, नाम, गौत्र और अंतराम आ जाते है। इनमें से दर्शनावरण, वेदनीय मोहनीय और अन्तराय पाप कर्म है चारही इन्हीं स्वाधीन है। इन आठों क्यों में मनुष्य जैसा कर्म करता है वैसा ही उसका भी भोगता है। ज्ञानावरण ग्राम शक्ति को बनाता है, वर्तनावरण दर्शन शक्ति का अवरोधक है मोनीय मोड उत्म कथा है। राय इष्ट वाचन में बाधा उपस्थित करता है। बीदों की बाइ बाती है। बाद कर्म पर अच्छा या द्वरा दौर, इश्वर भगवा इस्वर अथकवा अवध बाबा है। गोचक होते है। संस्कारी
कर्म के देवता भाइभाइ विवेद बाला मार
का पूरा म उच्च नीच दो काम में होगा इस कर्म का परिनाम है। कार्य विश्न उपस्थित कला है।
अकरा है
बंधन भावबंध और प्रदेश मे चार प्रकार
में है।
होते है।
यानी
जाता है।
है
और
इनको रोकने का नाम
है की के भाव का नाम है निर्मम फिट काम निर्वर और